ग़ज़ल
है उचित जब किसी से हो तुलना
तब कसौटी पे खुद को ही कसना
जो न चाहो कोई हॅसे तुम पर
मुफ्त के रायचन्द से बचना
साथ अपनों के हम भी बैठेंगे
ये अधूरा ही रह गया सपना
एक मुद्दत हुई नहीं जाना
होके उन्मुक्त मौज में हॅसना
स्वास्थ्य भी खा गई लपेटे में
स्वाद के फेर में फॅसी रसना
— समीर द्विवेदी नितान्त