राजनीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में आजीवन सीखने की अवधारणा

शिक्षा मानव विकास प्रक्रिया का आधारभूत घटक है। मानव विकास सूचकांक तैयार करते समय भी इसको पर्याप्त भार दिया जाता है। शिक्षा ही मानव को मानव की गरिमा प्रदान करती है। शिक्षा विहीन मनुष्य तो पशु के समान ही होता है। शिक्षा के बिना धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष किसी भी पुरुषार्थ की सिद्धि नहीं हो सकती। भारतीय परंपरा में शिक्षा को किसी विशेष आयु तक सीमित नहीं किया गया है। भारतीय शिक्षा प्रणाली मृत्युपर्यन्त सीखने की अवधारणा को प्रस्तुत करती रही है। वर्तमान समय में इसे आजीवन शिक्षा या आजीवन सीखने के रूप में स्वीकार किया जाता है।

आजीवन सीखना या आजीवन शिक्षा निरंतर सीखने का एक तरीका है, जो पेशेवर या व्यक्तिगत सन्दर्भ में हो सकता है। यह न केवल निरंतरता पर जोर देता है, वरन यह स्व-प्रेरित भी होता है। आजीवन सीखना औपचारिक या अनौपचारिक हो सकता है और यह व्यक्ति के जीवन भर मृत्युपर्यन्त चलता रहता है। यह एंड्रोगोजी या वयस्क शिक्षण सिद्धांत से निकटता से जुड़ा है। यह रचनावाद की संरचना के अन्तर्गत भी आता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे प्रौढ़ शिक्षा के साथ रखा गया है।

वर्तमान वैश्वीकरण, तेजगति और ज्ञान-चालित अर्थव्यवस्था में आजीवन शिक्षा विकास की गति को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। इक्कीसवीं की अर्थव्यवस्था श्रम आधारित नहीं है, बल्कि यह ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था है; जिसमें शिक्षा की कमी वाले लोगों को बेरोजगारी और कम वेतन का जोखिम उठाना पड़ता है। शिक्षाविद एलन बर्टन जोन्स के विचार में, ‘‘उपभोक्ता अर्थव्यवस्था एक सीखने वाला समाज बन जाएगी। जो कंपनियाँ तेजी से सीखेंगी, वे अपनी प्रतिद्वंद्वियों को हरा देंगी। सीखना एक आजीवन प्रक्रिया बन जाएगी, ग्रह पर सबसे बड़ी गतिविधि इक्कीसवीं सदी का प्रमुख विकास बाजार बनेगा।’’ यह स्थिति वास्तव में आ चुकी है। यदि हमें समाज में अपने स्थान को बनाए रखना है, तो बाजार में अपना स्थान बनाए रखने के लिए विकास करना है। विकास पथ पर चलने के लिए आजीवन सीखने का कोई विकल्प नहीं है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के भाग 3 के उपभाग 21 में आजीवन शिक्षा की अवधारणा को स्वीकार करते हुए आजीवन सीखने के लिए संरचनात्मक ढांचा विकसित करने की बात की गई है। उपभाग 21.9 में समुदाय एवं शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए पुस्तकों तक पहुंच और उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक समझा गया है। यह नीति अनुशंसा करती है कि सभी समुदाय व शिक्षण संस्थान-विद्यालय, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय ऐसी पुस्तकों की समुचित आपूर्ति सुनिश्चित करेंगे जो कि सभी शिक्षार्थियों, जिनमें निशक्त जन व विशेष आवश्यकता वाले शिक्षार्थी भी सम्मिलित हैं की आवश्यकताओं और रुचियों को पूरा करते हों। केन्द्र व राज्य सरकारें ये सुनिश्चित करेंगी कि पूरे देश में सभी की, जिसमें सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित लोगों के साथ-साथ ग्रामीण और दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले भी शामिल हैं, पुस्तकों तक पहुँच हो और पुस्तकों का मूल्य सभी के खरीद सकने के सामर्थ्य के अन्दर हो। सार्वजनिक व निजी दोनों प्रकार की एजेंसियाँ/संस्थान पुस्तकों की गुणवत्ता व आकषर्ण बेहतर बनाने की रणनीति पर काम करेंगी। पुस्तकों की ओनलाइन उपलब्धता बढ़ाने व डिजिटल पुस्तकालयों को अधिक व्यापक बनाने हेतु कदम उठाए जाएंगे।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 समुदायों व संस्थानों में जीवंत पुस्तकालयों को बनाने व उनका सफल संचालन सुनिश्चित करने के लिए, यथोचित संख्या में पुस्तकालय स्टॉफ की उपलब्धता पर जोर देती है। उनके व्यावसायिक विकास के लिए उचित करियर मार्ग बनाने एवं करियर प्रबंधन डिजाइन करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। विद्यालयों के पुस्तकालयों को समृद्ध करना, वंचित क्षेत्रों में ग्रामीण पुस्तकालयों व पठन कक्षों की स्थापना करना, भारतीय भाषाओं में पठन सामग्री उपलब्ध करवाना, बाल पुस्तकालय व चल पुस्तकालय खोलना, पूरे भारत में सभी विषयों पर सामाजिक पुस्तक क्लबों की स्थापना व शिक्षण संस्थानों व पुस्तकालयों में आपसी सहयोग बढ़ाना; आजीवन सीखने की प्रक्रिया को तेज करने के अन्य उपायों में सम्मिलित हैं।

सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में वैदिक काल से ही स्वीकार की गई है। आज की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में तो आजीवन सीखना अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गया है। सीखना दो प्रकार में वर्गीकृत किया जा सकता है- व्यावसायिक उपयोगिता के लिए सीखना और केवल सीखने के लिए सीखना। वर्तमान समय में एक बार आजीविका में लगने के बाद भी उस आजीविका में प्रभावी रूप से बने रहने के लिए भी सीखने की आवश्यकता बनी रहती है। तीव्र प्रौद्योगिकी विकास के कारण कार्य करने के तरीके भी अप्रचलित हो जाते हैं। अतः अपने आपको कार्यशील बनाए रखने के लिए निरन्तर व्यावसायिक विकास के लिए आजीवन सीखने की आवश्यकता बनी रहती है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन(OECD) के शोध में अनुमान लगाया गया है कि मौजूदा नौकरियों में से 32 प्रतिशत में उनके संचालन के तरीके में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल सकते हैं। यह भी अनुमान है कि 14 प्रतिशत नौकरियों को पूरी तरह से स्वचालित किया जा सकता है। फिर भी पाँच में से दो(41 प्रतिशत) वयस्क ही शिक्षा व प्रशिक्षण में भाग लेते हैं। जो कर्मचारी आजीवन सीखने को स्वीकार नहीं कर रहे हैं, उनके पीछे छूटने व अप्रचलित हो जाने का जोखिम है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इसी समस्या के निराकरण के प्रयास के रूप में आजीवन सीखने की अवधारणा पर जोर देती है।

आजीवन शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को न केवल व्यक्तिगत रूप से लाभ होता है, बल्कि इससे मजबूत समाज और मजबूत बाजार बनाने में भी मदद मिलती है। ओईसीडी के अनुसार, ‘एक कुशल कार्यबल फर्मो के लिए नई प्रौद्योगिकियों और कार्य संगठन प्रथाओं को विकसित करना और पेश करना आसान बनाता है, जिससे समग्र रूप से अर्थव्यवस्था में उत्पादकता और विकास को बढ़ावा मिलता है।’

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 भारत को विकास की प्रक्रिया में तेजगति से आगे बढ़ाने के लिए, वैश्वीकरण के इस दौर में ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में देश का विकास सुनिश्चित करने का रोड मैप आजीवन सीखने की अवधारणा के रूप में प्रस्तुत करती है। यही व्यक्ति और समाज का विकास सुनिश्चि त करने का एक मात्र मार्ग है।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)