ऊंची उड़ान
“साहब जी, सिविल इंजीनियर इन चीफ आपसे मिलने आए हैं.” सोसाइटी के गार्ड का इंटरकॉम आया.
निखिल जी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. “कौन मिलने आए हैं?” पक्का करना चाह रहे थे.
“साहब जी, भेजूं क्या?”
“हां जी, भेजिए.” अब मिलने आए हैं तो मिलना तो पड़ेगा ही! “अजी सुनती हो! जरा—-” कि तभी कॉल बेल बज गई.
“सर जी, चरण स्पर्श स्वीकार कीजिए.” वेशभूषा से तो सिविल इंजीनियर इन चीफ लग रहे थे, पर दण्डवत करते हुए चरण स्पर्श!
“आयुष्मान, बुद्धिमान, सेवामान.” उठाकर गले लगा ही लिया. चरण स्पर्श का मान जो रखना था!
“कृपया बैठिए.” पहले आप सर! अंजान आगंतुक का अपनापन हैरान किए जा रहा था! इसी अपनेपन से उनका स्वागत भी हुआ और फिर चल पड़ी मुलाकात की गाड़ी!
“सर आपने पहचाना नहीं न!” जेब से एक फोटो निकालकर दिखाई, जिसमें सफेदी करने वाले तीन युवा सीढ़ियों में बैठे मोबाइल देखने में व्यस्त थे.
“कौन हैं ये?”
“सर, ये मैं हूं, वही आपका मिहिर, जिसे आपने स्मार्ट फोन गिफ्ट करके पंख लगा दिए थे. मेरे बाकी दोनों साथियों के पास स्मार्ट फोन था और लंच में जल्दी खाना खाकर वे मुझे पढ़ाते थे, घर जाकर मैं नोट्स बना लता था. आपके इसी स्मार्ट मोबाइल से मैंने के.बी.सी. देखा भी, हॉट सीट पर बैठा भी और इतनी धनराशि जीत ली कि मेरी पढ़ाई ठीक से हो पाई और आज सिविल इंजीनियर इन चीफ बनकर आपके सामने बैठा हूं!” एक ही सांस में मिहिर जी कह गए.
“सच में बेटा आपने तो कमाल ही कर दिया!”
“मेरी यह ऊंची उड़ान आपकी बदौलत ही है, अब आपके बेटे की एक आरज़ू है सर! कृपया मना मत कीजिएगा. सर चार महीने से एक एन.जी.ओ. चल रहा है, जिसे हमने अभी तक कोई नाम नहीं दिया, न ही उसका उद्घाटन समारोह किया है. ऐसे ही शुभ अवसर के लिए थोड़े समय के लिए कल सुबह ग्यारह बजे आपकी उपस्थिति आवश्यक है, मैं आपको ठीक दस बजे लेने आ जाऊंगा.”
“साथियो, कुछ साल पहले मुझे किसी ने एक स्मार्ट फोन गिफ्ट किया था, जिसके कारण मैं इतने उच्च पद पर खड़ा हूं. मैं अनुरोध करता हूं स्मार्ट फोन गिफ्ट करने वाले आदरणीय निखिल जी से- वे “निखिल प्रोग्रेसिव एन.जी.ओ.” का उद्घाटन करें और यहां उपस्थित 11 युवाओं को स्मार्ट फोन गिफ्ट करें!”
निखिल जी को मिहिर के इस पल के साथ अपने उस पल भी गर्व होना स्वाभाविक था. आज ऊंची उड़ान के लिए 11 युवाओं को पंख जो लगाए जा रहे थे.
— लीला तिवानी