हमें बहुत कुछ सीखना है
सत्य नहीं है
जाति
शाश्वत रूप नहीं है
धर्म का
समाज इनसे नहीं
मनुष्य से बनता है
चलता है समाज
परस्पर सहयोग से
श्रम और भुजबल से,
परिवर्तनशील है
यह संसार
क्षण – क्षण बदलती है
यह दुनिया
बदलता रहता है
अपना रूप नित्य
विचार, विवेक, एक दृष्टि
विकसित हो जाए
मनुष्यों के बीच
दूसरे को दुःख देना
पीड़ा पहुंचाना
अमानवीय व्यवहार है
अमित इच्छाओं से
मुक्त हो यह संसार
प्रेम, भाईचारा,सद्भाव से
संभव हो शांति
इस दुनिया में
बहुत कुछ सीखना है हमें
अपने आपसे
औरों से
जग के कण – कण से।