गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

एक बढ़िया ग़ज़ल का अनुमान है।
ग़ज़ल में उतारना भगवान है।
खूवसूरत मुखड़े को हम क्या कहें?
रौशनी की रौशनी पहचान है।
देखनी जन्नत तो मेरे पास आ,
आज कल बच्चों में अपनी जान है।
तड़प है इक ललक है इक हूक है,
दिल में कोई आरजू मेहमान है।
पार जाता है तो कोई डूबता,
कौन कहता है नदी अनजान है।
रंक से राजा बने राजा से रंक,
समय अपने आप में बलवान है।
भूमि केवल फर्ज पूरा करती है,
बीज जो बोता वही किरसान है।
खेल तेरे साथ हम ने खेलना,
जीत भी और हार भी परवान है।
बीज वोया है तो किस्मत देखेंगे,
कर्म अपने फर्ज में कुर्बान है
रूह की बालम सदा ही मानता,
तन हृदय मस्तिष्क तो शैतान है।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409