कविता
पुल पर खड़े होकर
दर्द को निहारता आदमी
साइकिल पर चलकर
गम ढोता आदमी
अपने ही विचारों में
मगन भाग्य कोसता आदमी
कौन किसको सुनाए अपना दुःख
तुम्हारा हाल पूछना था
पर अपना दुःख सुनाता आदमी
कोई नहीं इस जहाँ में सुनने वाला
परेशानियों से त्रस्त आज हर आदमी
— वर्षा वार्ष्णेय