सामाजिक

नारी चेतना का वैश्विक फलक

इस बात को हर कोई स्वीकार कर रहा है कि आज की नारी एक स्वतंत्र मनुष्य के रूप में अपनी पहचान के प्रति जागरूक हो रही है । जिसे ‘नारी चेतना’ की संज्ञा कह सकते है । जिसे अपने अस्तित्व व अपने आपके मूलभूत अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति सचेत होना या यह सचेत होने का प्रयास को ‘नारी चेतना’ माना जाता है। नारी के बारे में सर्वविदित है कि “नारी का सम्मान जहाँ है संस्कृति का उत्थान वहाँ है।” आज की नारी का प्रतिपक्ष रूढ़िवादिता, मान्यताएँ और वे परम्पराएँ हैं, जो उनकी अपनी प्रगति में बाधक हैं। अनेकानेक कोशिशों के बाद भी समाज में उनके आत्मसंघर्ष, असंतोष, पीड़ा-घुटन का दौर अभी भी थमा नहीं है । यह भी सही है कि आज नारी पुरुष के साथ कदम मिलाकर हर क्षेत्र में अपने अस्तित्व को प्रमाणित कर रही है।जीवन की लगभग हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर अपनी अहमियत की नजीर पेश कर रही हैं। परिस्थितियों के अनुसार अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने, लड़ने और अपने अधिकारों के प्रति मुख्य होने की शक्ति भी उनमें जागृति हुई है। आज की नारी ने जब शिक्षा, कला, साहित्य, संस्कृति, राजनीति, पुलिस, सेना, व्यवसाय, विज्ञान, व्यापार, खेलकूद आदि सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यताओं का लोहा मनवा रही हैं। वहीं अपने व्यक्तित्व, कृतित्व से गांवों की माटी से सत्ता के शीर्ष तक उनकी राजनीतिक, प्रशासनिक क्षमता से मील का नया पत्थर गाड़ रही है। आज महिलाओं के हितार्थ अनेक कानून बने हुए हैं, जिसके कारण भी महिलाओं में चेतना का दीर्घजीवी विकास हुआ है। जिसका ताजा उदाहरण चर्चित “नारी शक्ति वंदन अधिनियम “, 2023 विधेयक, जिसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में लगभग सर्वसम्मति से समर्थन मिला। बावजूद इसके कि लचर कार्यप्रणाली और विभिन्न कारणों से नारी की विकसित चेतना मौन हो जाती है। दहेज उत्पीड़न, शोषण, बलात्कार आदि का उदाहरण सामने है, जहां नारी ही पीड़िता है, लेकिन उसे नारियों का साथ नहीं मिलता।तब रिश्ते, बंदिशें, मजबूरियां उनके पांवों की बेड़ियां बन जाती है। तब नारी चेतना क्यों और कहाँ सुस्त हो जाती है? जरुरत है कि वैश्विक फलक पर उपस्थित दर्ज कराने भर से संपूर्ण नारी चेतना के भ्रम से बाहर निकलने की।घर परिवार से बाहर चाहे जितना नारी चेतना का विकास हो रहा हो, लेकिन जब अपने लिए, अपने घर, परिवार समाज की महिलाओं के लिए महिलाओं की चेतना शून्य ही हो जाती है। तब यह नारियों को आइना दिखाने के लिए पर्याप्त है। कहने को हम नारी चेतना की चाहे जितनी बड़ी बड़ी बातें कर अपनी पीठ थपथपा लें, मगर अभी भी नारियों में चेतना का बड़ा दायरा प्रतीक्षित है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण नारी शक्ति वंदन अधिनियम है। जिसे पास तो करा लिया गया, लेकिन 2029 तक समय का झुनझुना भी थमा दिया गया।

*सुधीर श्रीवास्तव

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