अंधविश्वास
अंधविश्वास का पाश है ऐसा जो एक बार आपको जकड़ ले तो छोड़ता नहीं आप उस में धंसते ही चले जाते हैं कभी निकल नहीं पाते जैसे चींटियों का आटा डालना, सड़क किनारे जगह जगह रुक कर कबूतरों का दाना खिलाना, पीर बाबा के दर पर जाना, जादू,टोना, झाड़ फूँक, साधु संतों के आश्रमों में जाना, बाबाओं के सत्संग और न जाने क्या क्या। और नतीजा क्या मानसिक और शारिरिक शोषण जिनकी खबरों से कोई भी अंजान नहीं। कितने ऐसे बाबा जेल में सज़ा भोग रहे हैं जो सुर्खियों में आ गए।बाकी कितने हैं जिनके गोरख धंधे चल रहे हैं।
अगर आपको प्रभु का ध्यान लगाना है उनकी आराधना करनी है तो घर पर बैठ कर करो न मानव देवताओं के चक्करों में क्यों फंस कर धन, गहने , समय और इज़्ज़त को गंवाना।
इधर से उधर समागमों, सत्संगों में भटकना पूरा पूरा दिन या फिर कई कई दिन लगाना। घर परिवार छोटे छोटे बच्चे अलग दुख भोगते हैं कभी चिलचिलाती गर्मी में, कभी बारिश में तो कभी सर्दी में सिर्फ उनके प्रवचन सुनने।
खुदा न खास्ता कोई हादसा हो जाए किसी भी कारण तो जान से हाथ धो बैठना। जिसका जीवंत उदाहरण हाल ही में हुआ हाथरस का दुखद हादसा जिसमें कितनी ही स्त्रियां और बच्चे मारे गए और कितने घायल हुए।अब जो स्त्रियां, बच्चे मारे गए उनके घरों का क्या? क्या हासिल हुआ? इसका जिम्मेदार कौन? जब इन सवालों का कोई जवाब ही नहीं फिर क्यों मानव देवताओं के अंधविश्वास में खुद को झोंका हुआ है। जागरूक बनिये, सुरक्षित रहिये और इस अंधविश्वास के भंवर से बाहर निकलिये तभी इन लोगों की संख्या कम होगी और आप स्वयं को और अपने परिवार को सुरक्षित रख पाएंगे वरना जीवन भर भटकते ही रहेंगे ढोंग और अंधविश्वास के अंधकार में।
….मीनाक्षी सुकुमारन