ग़ज़ल
खामोश आँखों की ज़ुबां से आई है
बेचैन दिल के दरमियां से आई है
इश्क की रानाई कहते हैं जिसे
अपनी अधूरी दास्तां से आई है
देखकर तुझको लगे है मानो तू
महफिल-ए-जादूगरां से आई है
तेरे दर की ये बुलंदी ए सनम
सजदा करते आस्तां से आई है
चलके पहाड़ों से ज़रा सी आबजू
मिलने मुहीत-ए-बेकरां से आई है
फिक्र ना गुल की ना गुलशन की रही
कितनी बेफिक्री खिज़ां से आई है
— भरत मल्होत्रा