ग़ज़ल
हर खुशी को संभाल रखा है
फिक्र को कल पे टाल रखा है
तेरी नज़रों की हैं करामातें
खाक मुझमें कमाल रखा है
परिंदे उतरें तो कहाँ उतरें
हर एक छत पे जाल रखा है
लाइलाज मर्ज़ है मुहब्बत का
हमने सब देखभाल रखा है
अपना माना था जिसे उसने ही
हमें गैरों में डाल रखा है
जवाब तूने ना दिया जिसका
आज तक वो सवाल रखा है
दिल में कैसे आए और कोई
तेरी यादों को पाल रखा है
— भरत मल्होत्रा