कविता

बादल

आयेंगे आपके घर ये बावरे से बादल।
तुम इंतजार करना फैला के अपना आंचल।
तुम खिलखिला रही हो दिल खिलखिला रहा है
कैसा प्रतीक्षाओं का सिलसिला रहा है
घर घर उमग उठेंगे ये पग ठुमुक उठेंगे
मन गा उठेगा लेकर फिर बांसुरी औ मादल।
ये दिन है बादलों के दुख के तबादलों के
पनघट पे लगी रुनझुन ये दिन हैं छागलों के
ये रूठ नहीं जाएं पथ भूल नहीं जायें
पर मन से भिगो जाएं ये मेघ मन के मरुथल।

— ओम निश्चल