गीत/नवगीत

बारिश का गीत

गीत गा रही वर्षारानी, आसमान शोभित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

गर्मी बीती आई वर्षा, चार माह चौमासा।
कभी धूप, तो कभी नीर है, भागा आज कुहासा।।
वरुणदेव की दया हो गई, हर प्राणी पुलकित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

स्रोत नीर के सूख गए थे, रुकने को साँसें थीं।
नित्य उदासी में मन रहता, गढ़ती नित फाँसें थीं।।
बारिश की बूँदों में पर अब, आज हर्ष अभिहित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

बेचैनी में मन खोया था, देह हुई थी बेदम।
पीर, वेदना बहुत बढ़ी थी, सता रहा था नित ग़म।।
इन मेघों का अभिनंदन है, लगता सुखद सतत् है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

बहा पसीना रोज़ अनवरत्, अब पावस का गायन।
जल की बूँदें करतीं देखो, मौसम का अभिनंदन।।
सकल उदासी विदा हो गई, हर पल उल्लासित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

बरसाती में भी तन भीगा, सड़कों पर है पानी।
बारिश की तो भैया देखो, बिलकुल अलग कहानी।।
छत पर बूंदों की टप-टप सुन, पोर-पोर हर्षित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

सावन का महिना है आया, तीज-पर्व अलबेले।
कहीं धार्मिक दृश्य लुभाते, कहीं श्रावणी मेले।।
रामायण के पाठ सुहावन, लोकगीत स्वर नित है।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

महिलाएँ श्रंगार कर रहीं, मेंहदी, महावर, कँगना।
मना रहीं त्यौहार गृहणियाँ, पायल बजती अँगना।।
पीहर आई बेटी व्याही, घर सारा पुलकित है।।
बहुत दिनों के बाद धरा खुश, तबियत आनंदित है।।

— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]