कविता

विचारों की दुनिया में

आज का यथार्थ
कल के लिए कल्पना है
कल की कल्पना
यथार्थ का रूप हो सकता है
जो आंखों के सामने
चलता है वे सभी सत्य नहीं होता
जीव – जगत को समझना
आसान नहीं है सबका
बहुत कम लोग होते हैं
साधना के क्षेत्र में
जो नित्य डटे रहते हैं
त्याग – समर्पण का महक
फैलाते – रहते हैं,
मन को अधीन करने की
मजबूत शक्ति है जिसके पास
वे अपना मार्ग निकालते हैं
शाश्वत सत्य नहीं है कोई
इस दुनिया में
नियम सबके लिए
सरल नहीं होता, गरल भी बनता
नियम के बिना
जगत का व्यवहार
चलता नहीं सुचारू रूप से
सुख – दु:खों का
यह उतार – चढ़ाव
सब के लिए समान नहीं होता
काल, परिस्थितियां
हमें चलाती हैं, हिलाती हैं
रूलाती हैं, सबक सिखाती हैं
अनुभवों की भिन्नता
विचारों का अंतर
चलता रहेगा.. चलता रहेगा
युग – युगों की कहानी है
रूढ़ – मूढ़ विचार
स्वार्थ का रूप है
परिवर्तनों को स्वीकार करना
कष्ट लगता है सुखी – संपन्न को
परिवर्तन के बिना
अधूरा है जीवन दु:खी संसार का
प्रलय के राग में
बह जाएंगी सारी विकृतियां
अहं के बिल ध्वस्त होंगे
एकता का रूप धारण कर
इंसानों का नव समाज
एक दिन सत्य का सांस लेगा।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।