कहानी – दस गज जमीन
“दस गज जमीन ही थी उसके परिवार की बर्बादी की सारी जड़…. ।
काश वह पहले सोच लेता और थोड़ा सब्र कर लेता । यह समझ लेता कि दस गज जमीन उसकी नहीं थी तो ये सब जो हुआ वह कभी नहीं होता “।
यह सोच सोच कर उसका अंतर्मन उसे जैसे कोस रहा था।
“इस थोड़ी सी जमीन के लिए यह मूर्खता भरा दुष्कर्म करके उसने अपना व अपने परिवार का भविष्य ही बर्बाद कर लिया।” फिर वह भीतरी ही भीतर आत्मग्लानि से भर उठता….।
जेल की सलाखों के पीछे बैठा वह यह सोच सोच कर परेशान हुए जा रहा था और खुद को कोसता भी जा रहा था।
” एक महीना हो गया सारे परिवार को अंदर हुए और किसी भी गांव वाले ने या रिश्तेदार ने कोई खबर नहीं ली। जिनके सुख-दुख में रात दिन साथ रहा था वे भी इस समय पल्ला झाड़ गए ।
दुनिया का दस्तूर ही ऐसा है सुख में हजारों साथ चल पड़ते हैं और दुख में अकेले ही सारे सफर को तय करना पड़ता है।
परंतु यह दुख तो किसी और ने नहीं उसने स्वयं खड़ा किया है।
“वह थोड़ी सी इस जमीन के लिए झगड़ा न करता और माधव राम पर हाथ न उठाता तो शायद यह नौबत न आती।”
गांव वाले व रिश्तेदार जो इस समय साथ नहीं दे रहे हैं वे साथ देंगे भी क्यों ?
उसने कोई अच्छा काम थोड़ी न किया है ,किसी की जान ले ली है…। इससे बड़ा घृणित काम और क्या हो सकता है ?”
“सड़ बेटा अब जेल में और अपने परिवार को भी साड़ ,तेरी करनी का फल है…।”
वह अंदर ही अंदर बुदबुदाता ।
वह अपने भीतर कई प्रश्न उठाता और उनके उत्तर स्वयं देता। फिर स्वयं को धिक्कारता। परंतु अब हल तो कोई नहीं था। अब किए की सजा तो भुगतनी ही थी…।
सोच सोच कर उसका दिमाग फटा जा रहा था….।
वह फौज में था तो इंस्ट्रक्टर था । कई आफिसर्स को उसने ट्रेनिंग दी थी। पूरी पलटन उसे उस्ताद जी , उस्ताद जी कहती थी। ट्रेनर्स को वह मोर्चा लगाना ही नहीं सिखाता था अपितु जीवन को किस तरह जीना चाहिए ऐसी नैतिक शिक्षा का पाठ भी पढ़ाता था। कितना बड़ा रुतबा था उसका पलटन में…।
उसने फौज में रहते हुए युद्ध भी लड़ा था कश्मीर में ड्यूटी के दौरान कई बार आतंकवादियों के साथ लोहा भी लिया था।
परंतु आज यह भीतर का युद्ध उन सब युद्धों से भयानक था जिसे वह अकेला लड़े जा रहा था।
हर आदमी ऐसे युद्ध नित लड़ता है जिसे देखने वाला कोई नहीं सिर्फ वह स्वयं होता है।
आज उसका सारा ज्ञान विज्ञान सारा रुतबा सब कुछ मानो अर्थहीन हो गया था…।
आज उन्हें कोर्ट में पेश किया जाना था। उनके वकील ने कहा था कि आपके परिवार की औरतों को शायद जमानत मिल जाए , मैं कोशिश करूंगा।
एक महीना पहले हुआ यूं था कि सड़क के किनारे उसकी थोड़ी सी जमीन थी । बगल में गांव के माधव राम की जमीन थी ।
सड़क के किनारे जमीन का मोह था कि माधव राम ने वहां दुकानें बनानी चाहीं । अभी प्लाट का काम चला था ।
पहाड़ की ऊबड़-खाबड़ जमीन को समतल करने के लिए उसने जेसीबी लगाई थी । धीरे-धीरे प्लाट बनने लगा था ।
गांव के किसी व्यक्ति ने उसको आकर जानकारी दी कि वहां माधव ने जेसीबी लगाई है और प्लाट बना रहा है ।
मुझे लगता है जिस जगह पर वह प्लाट बना रहा है वह तुम्हारी है।
गांव के उस व्यक्ति का उसे महज उकसाना भर था । क्योंकि उस व्यक्ति की माधव के साथ नहीं बनती थी।
वर्षों से उन दोनों का झगड़ा चल रहा था । कारण वहां भी जमीन ही था ।
दोनों वर्षों से कोर्ट कचहरियों के चक्कर लगा रहे थे…।
वह फौजी आदमी ….अभी चार साल पहले ही रिटायर हुआ था । सूबेदार रिटायर आया था । दोनों बेटे पढ़े- लिखे थे ।
नौकरी के दौरान सारा परिवार साथ रखा । बच्चे साथ रखकर पढ़ाए लिखाए।
बड़ा बेटा प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा था ।उसकी दो साल पहले ही शादी हुई थी । उनके एक साल का बच्चा था ।
दूसरा एम एस सी करके जाब के लिए एग्जाम की तैयारी कर रहा था । दीपावली की वजह से सारा परिवार घर में था । दोनों बेटे और बहू भी घर आ गए थे।
अठाईस साल फौज की नौकरी की । इन अठाईस सालों में परिवार साथ रहने के कारण उसे न तो अपनी जमीन का ठीक से पता था और न ही गांव के परिवेश का । इन अठाईस सालों में गांव कितना बदल गया था । जब वह फौज में भर्ती हुआ था तो पूरे गांव में दस बारह घर थे।आज वहां सत्तर अस्सी घर हैं ।
उस समय पूरा गांव एक परिवार की तरह रहता था परंतु आज सबकी अपने-अपनी ईगो है सबके अपने अपने स्वार्थ हैं।
अब न तो वह पुराना सौहार्द है और न ही भाईचारा….।
पैसों की भूख अपने चरम पर है पहले लोगों में गरीबी होती थी वे थोड़े में गुजारा कर लेते थे आज हर घर के आंगन में गाड़ी खड़ी है परंतु भूख इतनी कि इतना सब होने के बावजूद भी उन्हें कुछ नजर नहीं आता। वह पड़ोस के उस आदमी के कहने पर ही वहां पहुंच गया था…।
जहां से उसकी बर्बादी की कहानी शुरू हुई…।
जिंदगी के अगले पन्ने पर क्या लिखा है शायद कोई नहीं जानता। सिर्फ जानता है तो ईश्वर जानता है कि उसके किरदार में किस-किस पार्ट को जोड़ना है और किस पार्ट को निकाल देना है।
उसे भी तो पता नहीं था कि जिंदगी में ऐसा दिन भी आएगा। खुशी-खुशी उसके दिन बीत रहे थे ।
अच्छी खासी पेंशन मिलती थी। बुढ़ापा अपनी दहलीज पर था …।
भरा पूरा परिवार था बच्चे सेटल हो रहे थे । यह सब क्या हो गया पलक झपपते ही।
जिंदगी के इस पन्ने के बारे में तो उसने कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी की किताब के इस पन्ने पर उसके परिवार की बर्बादी की इबादत लिखी होगी।
जब उनकी हाथापाई हुई तो उसके धक्के से माधव नीचे गिरा था उससे उसका सिर फट गया था ।
फिर गांव का प्रधान आ गया ….
प्रधान उसे तुरंत गाड़ी में डालकर अस्पताल ले गया । उसने सुना था कि वह अस्पताल तक ठीक था। पुलिस में रिपोर्ट हो गई थी । जैसे ही उसे वापस घर लाया जा रहा था खबर आई कि वह मर गया है….. । यह नियति थी या उसका दुर्भाग्य ।
कुछ भी नहीं कहा जा सकता था…।
फिर थोड़ी देर में ही पुलिस आ धमकी और उन्हें थाने ले आई थी ।
ये सारे दृश्य उसकी आंखों के सामने से एक एक करके सरकते जा रहे थे ।
उन दोनों की ही तो लड़ाई हुई थी ।उसका परिवार और मेरा परिवार दोनों वहां पहुंच गए थे। परंतु किसी ने भी एक दूसरे पर हाथ नहीं उठाया था । क्योंकि तब तक गांव वाले और भी पहुंच गए थे। इसलिए उन्होंने बीच बचाव करके झगड़े को आगे नहीं बढ़ने दिया था।
पूरा परिवार एफ आई आर में दर्ज हो गया था …।
तभी सिपाही ने आकर कहा चलो कोर्ट चलो आपकी पेशी है बाहर गाड़ी खड़ी थी।
सिपाही की आवाज कानों में पड़ते ही वह पुनः चेतना में लौटा …।
सारा मुजरिम परिवार कोर्ट पहुंच गया था । यहां कई लोग उसे जानने पहचानने वाले थे।जो उसे अनदेखा कर उसकी बगल से गुजर रहे थे । उसे ऐसे लग रहा था मानो उसके ऊपर घड़ों पानी पड़ रहा हो। उसे लगा काश यह धरती फट जाए और वह इसी में समा जाए। इतनी शर्मिंदगी उसने जीवन में कभी नहीं झेली थी । पूरा दिन कोर्ट में बैठने के बाद शाम को फैसला आया उसकी पत्नी व बहू को जमानत मिल गई । परंतु पुलिस उसके दोनों बेटों व उसे फिर गाड़ी में बैठा कर जेल ले आई । उस दस गज जमीन ने उसके परिवार की बर्बादी की इबादत लिख दी थी …। पूरा परिवार हत्या के जुर्म में जेल की सलाखों के पीछे जीने को मजबूर था।
शायद इस हत्या के जुर्म की कहानी का अंत अभी लंबा चलने वाला था ….।।
— अशोक दर्द