कहानी

आशीर्वाद

“संसार में रूप सबके सिर चढ़कर बोलता है” जानवी ने यह अब जाना था। साधारण नैन नक्श पर ह्रदय से कोमल और समझदार बीस वर्षीया जानवी ग्रेजुएशन कर चुकी थी और अब उसके लिए उपयुक्त रिश्ता देखा जा रहा था। पर, उसका गेहुआं रंग और साधारण कद काठी उसके सबसे बड़े दुश्मन प्रतीत हो रहे थे। लगातार नकारे जाने से वह धीरे-धीरे वह अपने में सिमटने लगी थी और फिर एक वर्ष बाद, अपने पापा को समझा बुझा कर उसने आगे की पढ़ाई जारी रखने की आज्ञा ले ली और किताबों को अपना साथी बना लिया ।
समय अपनी रफ्तार के साथ आगे बढ़ रहा था और साथ ही साथ उसके लिए उचित वर की तलाश भी जारी थी।
लगातार ठुकराए जाने की वजह से इक्कीस वर्ष की उम्र में ही जानवी में काफी ठहराव आ गया था। सीधी-सादी, धीर-गंभीर और बुद्धिमान जानवी जल्दी ही क्लास की जान बन गयी थी और सुहानी से उसकी अच्छी पटने लगी थी। जानवी के स्वभाव के बिलकुल जुदा सुहानी चुलबुली सी लड़की थी। अपने इक्कीसवें जन्मदिन पर सुहानी ने सभी दोस्तों को अपने घर पर आमंत्रित किया था। सभी लोग जब सुहानी के घर पहुंचे तो हैरान ही रह गए थे। सुहानी इतनी अमीर होगी इसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। कोई सोच नहीं सकता था कि इतना अमीर होने के बावजूद कोई इतना सरल हो सकता है। उसके जन्मदिन पर शहर के नामीगिरामी लोग भी आए थे। सबके कहने पर जब जानवी ने पार्टी में गाना गया तो सभी उसकी मधुर आवाज़ सुन मंत्रमुग्ध हो गए। उसकी आवाज़ ने आज किसी और को भी बांध लिया था, वो था सुहानी के भाई उमंग।
यूँ तो सुहानी उमंग से कईं बार उसे कॉलेज छोड़ने आने के लिए कहती थी,पर उमंग हमेशा ही मना कर देता था। पर जाने क्या चुंबकीय असर था जानवी की आवाज़ में, उस दिन के बाद से उमंग खुद ही सुहानी को कॉलेज छोड़ने के बहाने ढूंढने लगा था।
बेहद गोरा- लंबा और हद से ज्यादा आकर्षक उमंग, एमबीए की पढ़ाई ख़त्म करके परिवार के बिज़नेस को संभाल रहा था। जानवी जब भी सुहानी के घर जाती, वह कईं बार उसे आते जाते मिल जाता था। उसे देख कर दूसरी लड़कियों की तरह जानवी के ह्रदय पर भी कुछ उमंगें दस्तक देने लगीं थीं । पर, साथ ही साथ उमंग के आकर्षक व्यक्तित्व को देख वह सकुचा जाती। किधर असाधारण से व्यक्तित्व का उमंग और बिल्कुल साधारण से व्यक्तित्व की वह। पर, न चाह कर भी, बिन खुद को भी खबर हुए, वह उमंग के प्यार में डूबने लगी थी।। कईं बार उसे लगता कि उमंग भी उससे बात करने के मौके ढूंढता है और व्यस्त होने के बावजूद उससे फ़ोन पर बात करता है, पर वह खुद को किसी भ्रम में नहीं रखना चाहती थी। क्योंकि बात करने का यह मतलब नहीं है कि वह उसे अपनाएगा ही ! दोस्ती करने और अपनाने में बहुत फर्क होता है , यह जानवी पिछले कुछ वर्षों के अनुभव से जान चुकी थी।
इसके अलावा सुहानी ने खुद उसे बतलाया था कि उसके भैया के लिए लड़की की तलाश शुरू हो गयी है। पर भैया को न जाने कौन सी हूर चाहिए जिसकी वजह से वह हर रिश्ता ठुकराते जा रहे हैं। “अब तो माँ ने भी ठान लिया है कि उनके लिए किसी परी को ही ढूँढ कर लाएँगीं, ताकि वह मना न कर सके। ” कह कर सुहानी खिलखिला कर हंस पड़ी थी । यह सुनने के बाद तो कुछ सोचने या आगे बढ़ने का कोई औचित्य ही न था। हालाँकि जानवी यह सोच कर हैरान होती कि क्यों कुछ लोगों ने तो शादी के लिए सुंदरता को ही एक मात्र कसौटी बना दिया है? पर उसके सोचने से क्या होता !
अब जानवी ने सुहानी के घर जाना और उमंग से फ़ोन पर बात करना भी बहुत कम कर दिया था। पहले तो उमंग को लगा कि शायद पढ़ाई का बोझ ज्यादा है, इसलिए जानवी उससे कन्नी काट रही है, पर जब यही स्थिति पेपर ख़त्म हो जाने पर भी रही , तो उससे रहा न गया और उसने जानवी से बात करना ही उचित समझा।
कॉलेज खुलने के अगले ही दिन जब उमंग सुहानी को छोड़ने कॉलेज आया तो जानवी गेट पर ही मिल गयी। सुहानी के गाड़ी से उतरते ही उमंग भी गाड़ी से उतर गया और जानवी के सामने खड़ा हो उसने उसे गाड़ी में बैठने का इशारा किया। जानवी और सुहानी दोनों ने ही अविश्वास से एक दूसरे को देखा। सुहानी इसलिए हैरान थी क्योंकि उसे पता था माँ और उसे छोड़ कर उमंग ने किसी को भी फ्रंट सीट पर नहीं बिठाया है और जानवी ,,, वो तो हैरत के मारे कुछ बोल या समझ ही न पा रही थी कि आखिर क्यों उमंग उसे अपनी कार में बैठने को बोल रहा है । दोनों को अपनी तरफ बुत्त की तरह देखता पा उमंग झेंप सा गया और अपनी पॉकेट से एक खूबसूरत सा ब्रेसलेट निकाल कर जानवी के हाथ में पकड़ाते हुए बोला, “तुम मुझे अच्छी लगती हो और अगर मैं गलत नहीं हूँ तो तुम भी मुझे पसंद करती हो। यह ब्रेसलेट मैं अपने रिश्ते को एक नाम देने के लिए तुम्हारी कलाई पर पहनाना चाहता हूँ । बोलो ! क्या मैं तुम्हें पसंद हूँ ?”
जानवी का दिल तेजी से धड़क रहा था। दिल पर एक नई इबारत लिखी जा चुकी थी। उसने सुहानी की तरफ देखा। वो तो ख़ुशी से कूद रही थी। पर क्या उमंग के घरवाले उस जैसी साधारण लड़की को अपना आशीर्वाद देंगे, इस बात का उसे शक था। जानवी समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या जबाब दे।
“पर आपकी मम्मी को तो आपके लिए बेहद सुंदर, गोरी चिट्टी लड़की की तलाश है। क्या मुझे वो अपना अपनाने को तैयार होंगी ?” बड़ी मुश्किल से उसके मुँह से कुछ शब्द निकले।
“यह तुमसे तुमसे किसने कहा ?” उमंग हैरानी से बोला।
“वो … वो …..” हकलाते हुए उसने सुहानी की तरफ देखा।
“वो तो यह ज़नाब इतने रिश्तों को मना कर रहे थे इसलिए हमें लगा कि शायद इन्हें किसी परी की तलाश है। ” सुहानी मुस्कुराते हुए बोली, “पर हमें क्या पता था कि यह पहले ही गुणों की मल्लिका को पसंद कर चुके हैं। बोलो जानवी, बनोगी ना मेरी भाभी ?”
जबाब में जानवी संशय से बोली, “पर आपकी मम्मी जी ….क्या वे मान जाएंगी और हमें अपना आशीर्वाद देगी ?”
“देवी जी, यह मां का ही कहना है कि सुंदरता वह नहीं जो आईने में दिखाई देती है बल्कि वो है जो मन से महसूस की जाती है और यह ब्रेसलेट उन्होंने ही तुम्हारे लिए खरीद कर दिया है।” फिर जानवी के हाथों में ब्रेसलेट पहनाते हुए उमंग शरारत से बोला और वे बोल रहीं थी कि अगर मेरी बहू को मेरा बेटा पसंद है तो उसके साथ कॉफ़ी पीने चली जाए।
घरवालों का आशीर्वाद साथ में है, यह जानकर जानवी मुस्कुरा दी और सुहानी …., अपनी होने वाली भाभी को कार की फ्रंट सीट पर बिठा, वो खुद कार की पीछे वाली सीट पर बैठ गई थी। आखिरकार, शादी की डेट तय करने के लिए उनका घर जाना भी तो ज़रूरी था।

— अंजू गुप्ता ‘अक्षरा’

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed