गीतिका/ग़ज़ल

जीवन विधान

खग भरता ऊँची उड़ान है
लेश न पंखों में थकान है

पाना है गंतव्य सुनिश्चित
चुनौतियों से सावधान है

थोड़ा नभ, थोड़ा वन – प्रांतर
थोड़ी धरती स्वाभिमान है

दिनभर ‘चीं चीं चूँ चूँ’ करना
सुखद मंत्र है, मधुर गान है

विषम परिस्थितियों में जीना
जीवन का शाश्वत विधान है

पर्यावरण को मित्र बनाना
मिला वंशगत महाज्ञान है

कहीं भी रह लेंगे,सो लेंगे
अपना कहीं न घर – मकान है

प्रेम से तितली, फूल से मिलना
नित देता सुख का विहान है

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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