हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा: जाति न पूछो पप्पू की

कबीरदास जी कह गये हैं-
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का पड़े रहन दो म्यान।।
जाति पूछने पर साधु नाराज हो सकता है, पप्पू जी भी हो गये। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। वे किसी साधु से कम नहीं है। वे आज पचपन साल की उम्र तक भी कुँवारे हैं। चमचे उनको बालब्रह्मचारी भी कह सकते हैं, यद्यपि इसका प्रमाण तो थाईलैंड में उनकी सेंडविच मसाज करनेवाली बालाएँ ही दे सकती हैं। मैं यहाँ सुकन्या देवी का नाम नहीं लूँगा, जिसका नाम सुनते ही पप्पू जी और उनके चमचे हत्थे से उखड़ जाते हैं। मैं कोलम्बिया की उनकी पुरानी गर्लफ्रेंड वेरोनिका की भी चर्चा नहीं करूँगा, जिनके साथ कहा जाता है कि उन्होंने गुप्त विवाह कर रखा है। मैं यहाँ केवल जाति की चर्चा करूँगा।

जो पप्पू जी उनकी जाति पूछने पर अपना अपमान अनुभव कर रहे हैं, वे ही कल तक स्वयं को दत्तात्रेय गोत्री ब्राह्मण बताते हुए घूम रहे थे। यद्यपि उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि उनका कौन-सा पुरखा दत्तात्रेय गोत्री ब्राह्मण था। बता भी नहीं सकते, क्योंकि ऐसा कुछ था ही नहीं। इनको अपने पितामह का नाम भी याद नहीं होगा, जो आधे पारसी-आधे मुसलमान थे और जो नेहरू परिवार को माँस और दारू की सप्लाई किया करते थे। वैसे भी दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण संसार में एक भी नहीं है, क्योंकि यह गोत्र होता ही नहीं। लगता है कि किसी धूर्त ने उनको यह फर्जी गोत्र बताकर मूर्ख बना दिया है और अब वे इस गोत्र का कोई उल्लेख नहीं करते।

जो अपनी जाति पूछने पर अपमानित अनुभव कर रहे हैं, वे सारे देश में जातिगत जनगणना कराने की कसमें खाते रहते हैं। यानी वे सारी जनता से उनकी जाति पूछकर उनका अपमान करना चाहते हैं। जाति भी केवल हिन्दू की पूछी जाती है। यों तो मुसलमानों में भी जातियाँ होती हैं, पर उनकी जाति केवल पिछड़े वर्ग का आरक्षण लेने के काम आती है। पप्पू जी उनकी जाति पूछने पर शायद इसलिए अपमानित अनुभव कर रहे हैं कि वे स्वयं को हिन्दू नहीं मानते। हिन्दू तो हिंसक होते हैं और हमारे पप्पू जी कतई हिंसक नहीं हैं। वे तो परम शान्तिप्रेमी हैं और ऐसे ही शान्तिप्रेमी कटासुर समाज के अधिक निकट रहते हैं। पूरी तरह सम्भव है कि वे भी इसी समाज के अंग हों।

— बीजू ब्रजवासी
आषाढ़ कृ. 14, सं. 2081 वि. (3 अगस्त, 2024)