कविता

दीपक

दीपक अंधेरे में खड़ा है अकेला
खुद को जला कर करता उजाला
जग में तम का खड़ा है साम्राज्य
दीपक तनकर खड़ा है आज

तम प्रकाश कदम को रोक ना पाया
अंधेरे ने बरबस दीपक को धमकाया
मुस्कुरा दीपक ने दी तम को जवाब
हम ना डरेंगें तुमसे ओ मेरे नवाब

अंधियारा दीपक पे आरोप लगाया
झुठी कहानी अदालत को सुनाया
बेईमानों से झुठी गवाह भी दिलवाया
फिर भी दीपक को हरा नहीं वो पाया

दीपक सत्य की है अनूठा एक निशानी
इनकी गरिमा है जग में जानी पहचानी
असत्य की कितना भी हो करस्तानी
सत्य की जीत में हर एक है दीवानी

दीपक देता है जग को बड़ा अहम संदेश
खड़ा रहना मानव ईमान की ले वेश
धूर्त्त कितना भी कर ले अपनी मनमानी
सत्य की कम ना होगी कभी सत्य कहानी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088