कविता

मैं कौन हूँ, क्या हूँ?

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, कैसा हूँ?यह बताना ज़रूरी है क्या?आपको तो सब पता हैमैं क्या, कैसा और क्यों हूँपर एक बात जरूर हैमैं जैसा भी हूँ ठीक हूँऔर मैं ऐसे ही रहना भी चाहता हूँ।आप मुझे स्वीकार करें, जरुरी भी नहींमैं आपको विवश करने वाला होता कौन हूँ।पर एक बात साफ कर दूँमैं नहीं खुद को बदलने वालाआपके स्वभाव से तालमेल बिठाने वाला।बदलाव चाहते हैं तो आप खुद को बदलिएअपनी सुविधानुसार मेरे अनुरूप बनिएआप खुश रहिए और हमको भी खुश रखिए।बेवजह की उलझनों से भी बचिएमैं जैसा भी हूँ, वैसे ही स्वीकार करिएमुझे बदलने की कोशिश मेंअपना समय व्यर्थ मत करिए।फिर भी बदलाव का इतना शौक, इतनी उत्कंठा है तोयह प्रयोग पहले अपने आप पर कीजिए।क्योंकि मेरे जीने का यही तरीका हैहर किसी को अपने ढंग से जीने का अधिकार भी है,हम उसे पसंद करें, तो अच्छा है,और नापसंद करें हैं, तो यह सबसे अच्छा है।इससे किसी की स्वतंत्रता का हनन भी नहीं होगाहम हों या आप, दोनों परकिसी तरह का मानसिक दबाव भी नहीं होगा।फिर आपको हमसे पूछने की जरूरत ही नहीं होगी,कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ, कैसा हूँ?क्योंकि ये आपको पहले से ही बेहतर पता होगा,तब आपका भी जीवन आज से बेहतर होने के साथ बहुत बहुत बहुत खुशहाल होगा,और मानसिक तनावों से हमारा, आपका कोई रिश्ता भी नहीं होगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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