गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सच तो आखिर सच होता है
पर कितना कड़वा होता है।
झूठों के दम पर थे जीते,
सच्चों में भी बल होता है।
नदियों से बहना सीखो,
तरुओं में भी फल होता है।
कीचड़ में जो खिल उठता,
वो ही फूल कमल होता है।
नील गगन में उड़ते पंछी,
पंखों में सम्बल होता है।।
जिनमें न ईमान धर्म हो,
कर्म वही निष्फल होता है।
चलना कितना कठिन लगे,
धरती पर दलदल होता है।

— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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