जनस्वास्थ्य रक्षक, झोला छाप, जी नहीं।
क्या वाकई जनस्वास्थ्यरक्षक झोलाछाप हैं? इनकी उत्पत्ति अपने आप हुई है या इनको सरकार ने प्रशिक्षित किया है, यह वजूद में कैसे आए क्या यह अपने आप ही जनस्वास्थ्यरक्षक बन गए या इन्हें खंड चिकिसा अधिकारी की देखरेख में सरकार की गाईड लाइन एवं सरकारी आदेशों के तहत ट्रायसेम योजना के अंतर्गत प्रशिक्षित किया गया था। अब वो ही स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी वही अधिकारी और वही प्रशिक्षण देने वाले अब इनको झोलाछाप की संज्ञा देकर अपमानित करते हुए नजर आ रहे हैं सबसे बड़ी बात तो यह है कि इनको प्रशिक्षण दिया गया नियम अनुसार सरकार के आदेश आए राज्यपाल के आदेश आए स्वास्थ्य मंत्री के आदेश आए जो भी प्रक्रिया थी, पूरी तैयारी विधान सभा में पारित की गई। एक मैनुअल बनाया गया जिसमे राज्यपाल की सहमति दर्ज़ है,विधानसभा में सरकार के हिसाब से जो कानूनी प्रक्रियाएं होती है पूर्ण की गई उसके बाद प्रशिक्षण दिया गया अब उन्हें ही जो प्रमाण पत्र दिए गए क्या वह सब झूठे थे? समय-समय पर दिए गए प्रशिक्षण के बाद नियम अनुसार ग्राम पंचायत के द्वारा प्रस्ताव पास करके इन्हें गांव से चुनकर के प्रशिक्षण के लिए भेजा गया जहां पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में सरकार की मंशा के अनुसार इन्हें विधिवत प्रशिक्षित किया गया। इन्हें 6 महीने का कड़ा प्रशिक्षण दिया गया और बाद में इनका रजिस्ट्रेशन भी किया गया,और प्रशिक्षण के उपरांत इन्हें अपना कार्य करने के लिए 25000 का लोन भी दिया गया। और किट भी दी गई, जिसमें ट्रीटमेंट संबंधी कुछ सामग्री दी गई,और दवाइयां जो प्राथमिक उपचार में देना हैं,दी गई, और जब तक कांग्रेस सर रही समय समय पर इनकी मॉनिटरिंग की जाती रही जहां से प्रशिक्षण दिया गया उन्हें समय समय पर बुला कर मार्ग दर्शन दिया जाता रहा फिर इनकी बली चढ़ा दी गई बिना किसी सूचना के,नई निर्वाचित सरकार के मुंह ज़बानी आदेशों या पूर्व सरकार की योजना को गलत क़रार देदिया गया।
प्रशिक्षित जनस्वाथ्य रक्षक और दवाईयों की सूची भी दी गई थी ,जो उपयोग करनी है, सच तो ये है की जिन डाक्टरों ने प्रशिक्षण दिया वो ही इन्हें अपमानित करते नज़र आ रहे हैं, क्या chmo cmo द्वारा दिए गए सभी सर्टिफिकेट फर्जी हैं तो कार्यवाही जनस्वास्थ्य रक्षकों पर नहीं इनको वजूद में लाने वालों पर की जानी चाहिए, और जनस्वास्थ्य रक्षकों के उस जीवन काल का मुआवजा दिया जाना चाहिए जो पूरे तंत्र ने उन्हें धोखा देकर उन्हें बर्बाद कर दिया।अगर ये झोला छाप हैं तो इनको बनाने वाला कौन है, तो दोष किसका माना जायेगा ? एक बालक जब अपने कैरियर की तलाश में भटक रहा होता है तब ये वक्त उसके जीवन का वो टर्निंग प्वाइंट होता है,जहां से उसका पुरा भाविष्य निर्धारित होता है,ऐसे समय में उसे तत्कालीन प्रदेश सरकार ने सब्ज़बाग दिखाकर उसका सारा भविष्य मटियामेट कर दिया, चौपट कर दिया ।प्रशिक्षण तो दिया कुछ दिनों तक सब ठीक चलता रहा फिर सरकार बदली तो इनका कोई नाम लेने वाला न रहा।प्रशिक्षित किया है तो किस हिसाब से प्रशिक्षित किया है। हां इसकी सम्पूर्ण जानकारी जनस्वास्थ्यरक्षक मैन्युअल में देखी जा सकती है। जब जहां जरूरत पड़ी उन्होंने राष्ट्रीय कार्यक्रम में अपना पूर्ण सहयोग दिया टीकाकरण में सहयोग दिया जहां पर कोरोना कल में एमबीबीएस डॉक्टर प्रशिक्षित डॉक्टर है, काम करने को तैयार नहीं थे,तब वहां पर जाकर इन्होंने अपना सहयोग प्रदान किया। कई जगह तो सीएमओ , chmo के आदेशों के तहत कार्य करना पड़ा जब यह गलत थे या फर्जी थे तो इनसे क्यूं काम लिया गया क्यों आदेश दिए गए।स्वास्थ्य विभाग ने इन्हें आदेशित क्यों किया। इनका सिर्फ शोषण ही किया गया। इनका भविष्य बर्बाद कर दिया गया है, जिसकी जिम्मेदारी सरकार को उठाना चाहिए। सरकारों द्वारा नियम बनाए जाते हैं और अपने आप ही उसे बदल दिए जाते हैं और इसका भुगतान आम जनता को पकड़ना पड़ता है।अब ऐसी स्थिति में। यह किधर जा सकते हैं? सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि किसी जिम्मेदार व्यक्ति या सरकार या chmo हमे वो सर्टिफिकेट दिखाएं जिसमे ये लिखा हो की आपकी सेवाएं इस नियमों के अंतर्गत समाप्त की जा रही हैं, इस संबंध में सारे एविडेंस हैं हमारे पास ए से लेकर जेड तक हैं , कई प्रमाण हमारे पास हैं, जो हमें दोषी करार देने वालों को आइना दिखा सकते हैं, लेकिन हमारे देश की सरकारों को सच्चाई नज़र नहीं आती, वैसे इन जनस्वास्थ्यरक्षकों को कोई मानदेय नहीं दिया जाता है या दिया जाता था,फिर सरकार इन्हें क्यों अपने अधिकारों से वंचित कर रही है। क्या ये ऑपरेशन करते हैं, सिर्फ छोटी छोटी उन्ही बीमारियों का इलाज करते हैं जिनके लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया है। ये एक एक बड़ी तादाद के साथ दुर्व्यवहार और प्रताड़ना का गांधी के देश में पहला उदहारण है, जहां न्याय मांगना भी अपराध हो गया है, लेकिन सच तो सच है , जनस्वस्थ रक्षकों की हैं बड़ी तादाद जो एमपी में लगभग 52 हज़ार है उनके साथ न्याय होना चाहिए,उनकी पीढ़ा सुननी और समझना होगी, निष्कर्ष तो ये निकल रहा है कि नेतागण सच्चाई को स्वीकार करने में क्यों हिचकिचा रहे हैं, क्या वाकई हमारा कानून अंधा है,जहां न्याय मिलना असंभ सा ही लगता है,लेकिन इन बेचारों की आह कहीं किसी को न लग जाए,क्योंकि इनको झोला छाप कहना उनके ही मुंह पर तमाचा है जिन्होंने इन्हे बनया है।
सारे आदेश जनस्वास्थ्य रक्षक मैनुअल में देखे जा सकते हैं, जो झोला छाप कहने वालों की कलाई को सकते हैं, लेकिन सच का साथ और कमज़ोर का साथ कोन देता है। इस पर सरकार को और सबंधित अधिकारियों को पुनः विचार करना चाहिए, और जनस्वास्थ्य रक्षकों को कलेक्टर महोदय,chmo, राज्यपाल, मुख्यमंत्री,राष्ट्रपति, और प्रधान मंत्री को विधिवत ज्ञापन दिया जाना चाहिए,और कोर्ट में केस दायर कर अधिकार मांगना चाहिए और उन सभी को दोषी ठहराया जाना चाहिए जिन्होंने जनस्वास्थ्य रक्षकों का जीवन बर्बाद किया है।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह