मुक्तक
मृत्यु शाश्वत है पर क्यों मरूँ,
मृत्यु से पहले बातें क्यों करूँ?
जब कभी आयेगी आती रहे,
कब आयेगी सोच क्यों डरूँ?
कौन पहले जायेगा या बाद में,
यह निर्धारित विधना के हाथ में।
कर रहा कामना दीर्घायु हों सब,
स्वस्थ रहकर हम जीयें साथ में।
नेक अपने हों इरादे, मानवता भी रहे,
गुणवान हम सब बने, संस्कार भी रहें।
आस्था हो धर्म में, कर्म भी करते रहें,
सभ्यता का अनुसरण, संस्कृति भी रहे।
हम करें आदर बड़ों का, मान छोटों का रहे,
सिक्के खरे चलते सदा, ध्यान खोटों का रहे।
बुजुर्गों का साया रहे, मिलती रहें आशीष भी,
निकले नहीं मुख से कटू, ध्यान होंठों का रहे।
— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन