लघुकथा

डर के आगे जीत है

” हां, मुझे उद्यमी बनना है।”

” उद्योग की अ, आ, इ, ई का ज्ञान नहीं, और…..”

सब अपर्णा की खिल्ली उडा रहे थे। उसने ठान लिया था, जिस संस्था ‘शक्ति’ से वह जुडी है, उनके संबल, मार्गदर्शन और आर्थिक सहायता के साथ वह आगे बढेगी। शुरूआती तौर पर दूध मसाला, छांस मसाला, चाट मसाला, चाय मसाला, सैंडविच मसाला जैसे स्वादिष्ट  मसाले खुद बनाने लगी।वैसे भी उसके हाथों बने मसाले की सब हमेशा तारीफ करते हैं।

सोच लिया है उसने, क्वालिटी के साथ वह कभी समझौता नहीं करेगी। केवल पैसा कमाना जीवन का उद्देश्य नहीं है। उसके उत्पादन सबको पसंद आने चाहिए।

घर-परिवार का काम, अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते उसका उद्यम नित नये प्रतिमान गढ़ रहा था।

महिला उद्यमी बनने का सपना मन में उल्लास भर रहा था। किसी ने उसे मसाले निर्यात करने की सलाह दी। 

लेकिन अभी भी बडी राशि नहीं थी उसके पास। निर्यात के कठिन नियमों को देखते हुए हिम्मत भी नहीं हो रही थी उसकी।

‘शक्ति’ संस्था की संस्थापिका, उसकी शुभचिंतक रेणु जी ने उसे साहस तथा यथासंभव सहायता करने का वचन दिया। जोश और उमंग के साथ वह अपना काम करने लगी।

स्वादिष्ट मसाले सबको पसंद आने लगे। जो मजाक उडाना चाहते थे, वे साथ देने लगे।

अपर्णा का कारोबार देश-विदेश में फैलने लगा। कई महिलाओं को रोजगार भी मिला।

माननीय प्रधानमंत्री जी से उद्यम के लिए आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ।

आज वह सफल महिला उद्यमी कहलाती है। जगह-जगह उसकी शाखायें खुल चुकी हैं। सात समंदर पार भी मसालों की खुशबू सबका मन मोह रही है।

आज उसका सम्मान हो रहा है।

हाथ में माईक ले, आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता की ओर बढने की सलाह उपस्थित महिलाओं को देते हुए उसने सबको संबोधित करते कहा,

” कोई भी काम शुरू करते समय अपने आप पर भरोसा रखो। अथक परिश्रम और उत्पादन की गुणवत्ता पर ध्यान दो।”

” सबसे महत्वपूर्ण  बात समझ लो, डर के आगे जीत है। असफलता के डर से पीछे न हटो।”

तालियों के गड़गड़ाहट और बहुमान से अभिभूत आंखें नम हुई उसकी।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८