राष्ट्रीय शिक्षा नीति की डिजिटल इंडिया नीति में बाधक- अध्यापकों की आशंकाएँ
पूर्णतः आवासीय नवोदय विद्यालयों के प्रणेता भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को भारत में कम्प्यूटर युग प्रारंभ करने का श्रेय भी दिया जाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के लागू होने से पूर्व ही प्रारंभ कर दिए गए नवोदय विद्यालय, आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू होते-होते माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में अपना एक विशेष स्थान बना चुके हैं। वर्तमान में देश के 35 राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रत्येक जिले में लगभग 653 की संख्या में फैल चुके हैं। दूसरी ओर कम्प्यूटर आज कोई विशेष उपकरण नहीं रह गया है। शायद ही कोई गाँव ऐसा हो जिसमें कम्प्यूटर पहुँच न गया हो।
वर्तमान समय में हम कम्प्यूटर की नहीं, डिजिटल इंडिया की बात करते हैं। वर्तमान में डिजिटल इंडिया केवल नारों तक सीमित नहीं रह गया है। यह धरातल पर प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई पड़ता है। उद्योग, चिकित्सा, कृषि, परिवहन, बैंकिग, वित्त, बीमा, रेलवे, शिक्षा व प्रशिक्षण ही नहीं जीवन का प्रत्येक क्षेत्र डिजिटल हो चुका है। मोबाइल व आधार के डिजिट व्यक्ति के जीवन के अनिवार्य घटक बन चुके हैं। अधिकांश क्रय/विक्रय व भुगतान मोबाइल से ही होते हैं। मोबाइल और आधार के बिना सभ्य व्यक्ति जीवन की कल्पना करने की स्थिति में नहीं है।
शिक्षा संपूर्ण समाज का आधार होती है। शिक्षा के विकास के आधार पर ही सभी क्षेत्रों का विकास निर्भर करता है। अतः डिजिटल इंडिया का वास्तविक रूपांतरण भी शिक्षा के माध्यम से ही संभव है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में अनुच्छेद 23 में प्रौद्योगिकी का उपयोग व एकीकरण और अनुच्छेद 24 के अन्तर्गत ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा- प्रौद्योगिकी का न्यायसम्मत उपयोग सुनिश्चित करना, के द्वारा शिक्षा में प्रौद्योगिकी के प्रयोग को बढ़ावा देते हुए शिक्षा को डिजिटल बनाने व डिजिटल इंडिया को साकार करने की नींव रखने का प्रयास किया गया है। आजीवन शिक्षा की अवधारणा को भी डिजिटल इंडिया के अन्तर्गत प्रौद्योगिकी के विस्तार व सदुदयोग के माध्यम से ही लागू करना संभव है।
प्रबंधन के क्षेत्र में एक कहावत है कि जब भी कोई नवाचार प्रारंभ करने के प्रयास किए जाते हैं। परंपरावादी, विरोध करना प्रारंभ कर देते हैं। प्रबंधन की भाषा में इसे परिवर्तन के प्रति विरोध कहा जाता है। कम्प्यूटरीकरण का भी विरोध हुआ था। उसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में मोबाइल के प्रयोग का भी विरोध किया जा रहा है। जो अध्यापक हर समय अपने हाथ में मोबाइल लेकर कक्षा में जा रहा है। जो अध्यापक कक्षा में बैठकर मोबाइल से खेल रहा है, वही अध्यापक विद्यार्थियों को मोबाइल देने पर आशंका व्यक्त कर रहा है। जो पुलिस वाला ड्यूटी पर मोबाइल चला रहा है। जो व्यक्ति घर पर अपने तीन वर्ष के बच्चे को मोबाइल थमा देता है, वही व्यक्ति विद्यालय में आकर कक्षा 11 व 12 के विद्यार्थी के मोबाइल प्रयोग करने पर विरोध व्यक्त कर रहा है। माध्यमिक शिक्षा में मोबाइल व टेबलेट नहीं देंगे, तो डिजिटल इंडिया के लिए अपने विद्यार्थियों को तैयार कैसे करेंगे? मोबाइल व टेबलेट माध्यमिक व उच्च शिक्षा में एक वास्तविक आवश्यकता है।
निःसन्देह! मोबाइल का दुरूपयोग हो सकता है। ऐसी कौन सी वस्तु है, जिसका दुरुपयोग नहीं हो सकता? अध्यापक दुरुपयोग नहीं कर रहे क्या? उन्हें कक्षा में मोबाइल क्यों ले जाना चाहिए? अधिकारी व नेता अपने कार्यस्थल पर मोबाइल व लेपटॉप का दुरुपयोग करते हुए नहीं देखे जा रहे क्या? पुलिस वालों के खिलाफ मोबाइल पर खेलते रहने के कारण कार्रवाही के उदाहरण भी सामने आए हैं। फिर उन सबको भी मोबाइल के प्रयोग से वंचित कर देना चाहिए क्या? सड़क पर चलते समय दुर्घटना हो जाती हैं। रेलवे भी दुर्घटनाओं का शिकार हो जाती है। वायु और जल परिवहन भी दुर्घटनाओं का सामना करते हैं। दुर्घटनाओं के कारण हम परिवहन का प्रयोग तो बन्द नहीं करते। हाँ! अधिक सतर्कता के साथ नियम बनाते हैं। प्रशिक्षण बढ़ाते हैं। उपकरणों को अद्यतन करते हैं। उसी प्रकार विद्यार्थियों द्वारा मोबाइल व टेबलेट के दुरुपयोग की संभावना को रोकने के लिए नियम बनाए जा सकते हैं। उन उपकरणों में सुरक्षात्मक साफ्टवेयर अपलोड किए जा सकते हैं किन्तु मोबाइल और टेबलेट पर विद्यालय परिसरों, विशेषकर छात्रावासों में प्रतिबंध लगाकर केवल आशंका के कारण डिजिटल इंडिया के अभियान को क्षति पहुँचाने के कार्य से बचने की आवश्यकता है।
लेखक का व्यक्तिगत अनुभव है कि मोबाइल और टेबलेट माध्यमिक शिक्षा में अत्यन्त उपयोगी हैं। शायद ही कोई अभिभावक हो, जो अपने बच्चों को मोबाइल और टेबलेट की सुविधा से समर्थ होते हुए भी वंचित कर रहा हो। ऑनलाइल पढ़ने की सुविधा के साथ ही ऑनलाइन संसाधनों का प्रयोग करके विद्यार्थी अध्यापक के अतिरिक्त भी ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है। जागरूक अभिभावक इस आवश्यकता को समझ रहे हैं। मेरे सामने कम से कम 5 ऐसे प्रकरण आए हैं, जिनमें अभिभावक विद्यालय से इसलिए अपने पाल्य/पाल्या का स्थानान्तरण करा ले गए कि विद्यालय छात्रावास में मोबाइल रखने की अनुमति नहीं है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि माध्यमिक शिक्षा में विद्यार्थी को मोबाइल/टेबलेट रखने की अनुमति मिलनी चाहिए। सरकारी स्तर पर कक्षा 12 के विद्यार्थियों को टेबलेट वितरण करने की नीतियाँ भी बनाई जा रही हैं किन्तु शिक्षक वर्ग की आशंकाओं के कारण और संस्थानों की नीतियों के कारण विद्यार्थी उनका उपयोग प्रभावशीलता के साथ अध्ययन में नहीं कर पा रहे हैं।
माध्यमिक शिक्षा के अन्तर्गत मोबाइल/टेबलेट की अनुमति न होने के कारण विद्यार्थियों में चोरी से रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जब कोई काम चोरी से किया जाता है, तो उसके दुरुपयोग की संभावना अधिक होती है। मार्गदर्शक सिद्धांतो व नियमों का विनियमन न होने के कारण किसी भी प्रकार की नियामक प्रणाली नहीं होती। छात्रावासों में चार्जिंग पोइंट न होने के कारण विद्यार्थी बिजली की लाइनों से छेड़छाड़ करते हैं। इस कारण न केवल सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुँचती है, वरन् विद्यार्थियों की सुरक्षा व संरक्षा के लिए भी खतरे बढ़ते हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को सही अर्थो में लागू करने के लिए माध्यमिक शिक्षा में सभी विद्यार्थियों को टेबलेट उपलब्ध करवाते हुए उनके स्वतंत्र प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके बिना डिजिटल इंडिया की परिकल्पना को साकार करना संभव न हो सकेगा।