मुक्तक/दोहा

दोहा- कहें सुधीर कविराय

******सफलता*******यह जीवन अनमोल है, आप लीजिए जान।सुख दुख इसके अंग हैं, करिए इसका मान।।जीवन सस्ता है कहाँ, ये होता अनमोल।हम सब निज संघर्ष से, रोज चुकाते मोल ।।सुख पाना यदि आपको, करिए सतत प्रयास।निज के ही सामर्थ्य से, अर्जित हो उल्लास।।श्रम से है बनता सदा, सबका अपना भाग्य ।सुख लाता है संग में, मानव का सौभाग्य।।मेरी इतनी चाह है , खुशियां मिलें हजार।सुरभित ही होता रहे, प्रेम प्यार व्यवहार।।सत्य सदा ही खोजते, लोग सतत दिन रात।जिसे सभी को प्रभू ने, मुफ्त दिया सौगात ।।*******विविध**********भाई भाई में हो रहा, युद्ध आज हर ओर।अंधकार जब से हुआ , रिश्तों में घनघोर।।कभी किसी का भी भला, मत करिएगा आप।जब अपने ही स्वार्थ का, छिपा रखा हो पाप।।हमने उसके दर्द को, जब से जाना यार।मुझको ऐसा लग रहा, मुझे पड़ी है मार।।किसको अपना हम कहें, किसको अपना जानें।सबकी अपनी समझ है, माने या न मानें।।आया सावन मास है, भक्तिभाव भरपूर।कांवड़ लेकर जा रहे, भोला मस्ती चूर।।उसने उसको दे दिया, अच्छा खासा घाव।आखिर ऐसा क्या हुआ, गिरा आज जो भाव।।जितना क़िस्मत में लिखा, मिल ही जाता यार।किस्मत में‌‌ जो है नहीं, ख्वाहिश है बेकार।।जिसने भी जाना नहीं, कभी किसी का दर्द।समझ लीजिए आप भी, वो कैसा बेदर्द।।*******आधार*******ईश्वर ही है विश्व के, जीवन का आधार।उसकी महिमा है बड़ी, अमिट अनंत अपार।।नश्वर ये संसार है, जीवन का है सार।बुद्धिमान वो है बड़ा, माने जो आधार।।राजनीति की ओट ले, कुर्सी का आधार।।जनता जाये भाड़ में, इनका असली सार।लोकतंत्र इस देश में, जनमत का आधार।हम सबको भी चाहिए, बनना भागीदार।।भाईचारा ढोंग है, झूठा प्रेम आधार।हमको तो है लग रहा, यह विचार बेकार।।रिश्तों के आधार की, दरक रही है नींव।समय चक्र के खेल में, भटक गए सब जीव।।*******शिव******करिए शिव आराधना, आया सावन मास।इनके पूजा पाठ से , मिटते सब संत्रास।।प्रलयंकारी रूप में, शिव शंभू नटराज।तांडव जब शिव जी करें, प्रलय करे आगाज।।नंदी जी के कान में, कहिए अपनी बात।जाती शिव तक बात वो, बिना घात प्रतिघात।।हर पल मन में हम रखें, शिव शंभू का नाम। शिव शिव शिव रटते रहें, बन जाएंगे काम।।भक्तों को शिव हैं प्रिए, शिव को पुत्र गणेश।नन्दी जिनके शिष्य हैं, हरते शिव जग क्लेश।।कांवड़ के जल से करें, जो शिव का अभिषेक।पूरी हो हर कामना, चाहे रहें अनेक।।*******रावण********आज राम जी मौन क्यों, देते नहि अब ध्यान।उत्पाती रावण करे, बढ़ चढ़ नित गुणगान।।रावण अब मरता नहीं,कितने मारो बाण।रावण जिद पर है अड़ा, नहीं छोड़ता प्राण।।वह रावण जो था मरा, अब उसका क्या गान।घर घर रावण कुछ बसे, कैसा बना विधान।।मर्यादा लुटती रहे, आँखें रहतीं बंद।रोती रहती यह धरा, हँसते है छल छंद।।******पावन******पावन जिसका नाम है, और अयोध्या धाम।मर्यादा की सीख दे, कहते उसको राम।।रिश्ता भाई बहन का, पावन और पवित्र।सभी चाहते हैं सदा, बना रहे ये चित्र।।पावन जब तक आपका, रिश्तों का आधार।मर्यादा की छांव में, बना‌ रहेगा प्यार।।पावन जिनका नाम है,बसे अयोध्या धाम।मर्यादा की सीख दे, कहें उन्हें हम राम।।गंगा मैय्या पावनी, मान रहे हम आप।हम ही मैली कर रहे, करते कैसा पाप।।सबके मन को कीजिए, प्रभु जी पावन आप ।धरती पर नहि हो कभी, किसी तरह का पाप।।पावन मेरा नाम है, और सुघड़ सब काम।फिर भी कोई प्यार से, लेता कब है नाम।।*******मित्र, मित्रता*******मित्र आप हैं जानते, किसको कहते मित्र।खींच सके जो आपका , जैसा होये चित्र।।सोच समझ कर कीजिए, आज मित्रता आप।कहीं मित्र ही नहि बने, जीवन का अभिशाप।।कभी मित्र के मध्य में, उठे नहीं दीवार।जब तक मन में मित्र के, जन्म न ले कुविचार।।आज मित्रता हो रही, स्वार्थ छिपाकर यार।मित्र भागता दूर है , करके बंटाधार।।आज मित्रता का दिवस, खुश रहना तुम मित्र।मेरी भी है कामना, अति सुंदर हो चित्र।।हर रिश्ते में हो सदा, मित्रों जैसा भाव।सच मानो तब मित्र के, दिखे न कोई घाव।।भ्रात बहन की मित्रता, बनती सदा मिसाल।अब तो आपस में लड़ें, आंख दिखाते लाल।।*****सूझ बूझ******हल हो जाते हैं सभी, सबके सारे कष्ट।सूझ बूझ से काम लो,होगी मुश्किल नष्ट।।सूझ बूझ से ही करें, अपने सारे काम।मिल जायेंगे हल सभी, और मिले आराम।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921