कविता

दुपट्टा

दुपट्टा सिर्फ कपड़ा या कपड़े का टुकड़ा नहीं
ये विरासत में मिला उपहार है,
या यूँ कहें कि हमारी बहन बेटियों को
दादी, नानी और माँ से मिली सौगात है।
दादी ने बुआ को, नानी ने माँ को दिया
और अब माँ ने मुझे देकर
अपनी जिम्मेदारी निभाई।
और बड़े प्यार से ये समझाया 
इसे महज दुपट्टा मत समझना
ये हैं नारी की लाज का गहना।
जिसे तू संभाल कर रखना
अपने सिर पर संभाल कर रखना
इसे कीमती गहने से भी कीमती समझना,
यह सीख सदा ही याद रखना
इसे लोक लाज का पैमाना समझना।
इसके अलावा भी ये तेरे बहुत काम आयेगा
तुझे धूल, धूप, से बचायेगा,
धार्मिक गतिविधियों में तेरे सिर की 
शोभा बन तेरा मान सम्मान बढ़ाएगा।
मर्यादा का आभास करायेगा,
लोक लाज का ये दुपट्टा रुपी गहना
हर कहीं तेरी शान बढ़ाएगा
तेरी पहचान बनाएगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921