द्रोपदी
सुनो द्रोपदी
करता चीर हरण दुशासन
पट्टी बांधे बैठे धृतराष्ट्र
नज़र झुकाये भीष्म पितामह
बड़े बड़े सभी योद्धा
मूक बनें बैठे हैं
अब न रख तू इनसे उम्मीद कोई
अब कृष्ण भी न आएंगे
लाज बचाने तेरी
तुझको ही अस्त्र उठाना होगा
अपनी लाज बचाने को
रनचंडी बन
इन वस्त्र हरण करने वालों के
शीश तुझे ही धड़ से अलग करने होंगें
सभा जुटी है शिखण्डियों की
लहू पानी है बन चुका आज
अब उठा खुद अस्त्र
सिर उड़ा उनका
जो खेले तेरी अस्मत से