कविता

वन महोत्सव

हर वर्ष हम वन महोत्सव हैं मनाते
करोड़ों पेड़ इस धरा पर हैं लगाते
कितने पेड़ कामयाब हुए किसी को पता नहीं
अगले वर्ष फिर हम वही हैं दोहराते

किसी नेता को मुख्य अतिथि हैं बनाते
खातिरदारी के नाम पर हैं लाखों उड़ाते
अब तक के लगाए पेड़ यदि लग जाते
तो आज जंगल ही जंगल नज़र आते

जो थोड़े पेड़ अपनी सहनशक्ति से हैं लग जाते
बिना देखभाल के भी हैं अपना दम दिखाते
थोड़े से बड़े जब हो जाते है मुश्किल से
तब लोग पूरा जंगल ही हैं जला आते

वन महोत्सव का औचित्य तब समझ आए
जब भारत का हर नागरिक एक पेड़ लगाए
पेड़ों की बच्चों की तरह करे सुरक्षा
जंगलों को अपने फायदे के लिए न काटे न जलाए

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र