याद मुद्दत से वो है आया कहाँ
याद मुद्दत से वो है आया कहाँ,
गुफ्तगू प्यार की सुनाया कहाँ,
जुस्तजू दिल की वह बताया कहाँ,
रूबरू खुल के अभी आया कहाँ!
पर्दे कितने रहे हैं रूह मेरी,
दर्दे दिल कितने मिले राह तेरी,
समझ नाटक भी तेरा आया कहाँ,
सफर आसान था मगर जाना कहाँ!
रहे मज़बूर मदारी बन्दर,
लाठी ढ़पली नचाए कितने किधर,
देखने वाले सदा आते रहे,
नाचने वाले यहाँ नचते रहे!
फ़रक ना मन के मिटा हम थे सके,
जग को जिगरों में बिठा ना थे सके,
दिल में दुनियाँ को समा कब थे सके,
दाग की दास्तान न निरख सके!
आज जब याद किया दिल से उसे,
राह जी भर के ताके जब थे उसे,
दूर वह हम से नज़र आया कहाँ,
गुलिस्ताँ ‘मधु’ से भरा पाया जहान!
— गोपाल बघेल ‘मधु’