हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : कंगलादेश के कटासुर

कंगलादेश के कटासुर कुछ दिन पहले तक काफिरों की लूटपाट, हत्या और बलात्कार करके शबाब कमा रहे थे। लेकिन बुरा हो इस बाढ़ का कि उनको अपनी जान बचाने के लाले पड़ गये। हज़ारों कटासुर बाढ़ में बह गये। जो बहने से बच गये, वे और भी बुरी हालत में हैं। बेचारों के पास सिर छिपाने को छत और पेट भरने को अन्न का दाना तक नहीं है।

मजबूरी में वे उन्हीं मन्दिरों में पनाह ले रहे हैं, जिनको वे कल तक तोड़ रहे थे और उन्हीं काफिरों का दिया खाना खा रहे हैं, जिनकी कल तक लूटपाट और हत्या कर रहे थे। वे दाना-पानी के लिए अपने अल्लाह से भी फ़रियाद नहीं कर सकते, क्योंकि उससे कोई उम्मीद नहीं है। उनका अल्लाह मरे हुए कटासुरों के लिए हूरों और दारू की सप्लाई तो कर सकता है, पर ज़िन्दा कटासुरों के लिए राशन की सप्लाई करना उसके वश की बात नहीं है।

वे दूसरे कटासुर मुल्क पोर्किस्तान से भी कोई उम्मीद नहीं रखते, क्योंकि वह खुद कंगाली की हालत में भीख का कटोरा लिये दुनियाभर में घूम रहा है। जिसके पास ज़हर खाने तक को पैसे नहीं है, वह कंगलादेश की क्या मदद करेगा? अब रह गयी बगदीदी ! तो वह आजकल बलात्कारियों को बचाने में लगी है, कंगलादेशी कटासुरों को कैसे बचाएगी। अधिक से अधिक वह दस-बीस लाख कटासुरों को अपने राज्य में घुसाकर नागरिकता और वोटर कार्ड दिलवा सकती है।

अन्त में उनकी आशा की एकमात्र किरण काफिर हिन्दू मोदी जी रह गये हैं। अगर उनको दया आ गयी, तो वे कंगलादेश के कटासुरों की मदद कर सकते हैं। वरना उनका अल्लाह ही मालिक है !

— बीजू ब्रजवासी