कविता

राह बनाना है

राह बनाना है तुझको अब
क्यों किसी का तू राह तके,
उतना ही तुम यार रखो
मरते दम तक जो निबाह सके,
बहुत आएंगे राहों में रोड़े,
डरकर क्यों चलना छोड़ें,
कर जाएं कुछ ऐसा नया
कि बनी बनायी भ्रम तोड़ें,
बनाना पड़ेगा भोजन खुद को
नहीं मिलेगा पकाये पके,
क्यों किसी का तू राह तके,
नहीं है चलना उन राहों में
जिसमें सारे लोग चले,
अपना दाल गलाना वहीं तुम
न जहां किसी का दाल गले,
गिराना नहीं उठाना है,
सबको आगे बढ़ाना है,
जितना अच्छा सोच रहा
नहीं उतना आज जमाना है,
बन जाओ अब ऐसा बंदा
सबको गले फिर लगा सके,
क्यों किसी का तू राह तके,

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554