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अंतस् की 61वीं गोष्ठी

अंतस् की 61वीं गोष्ठी अत्युत्तम रही| संस्था की अध्यक्षा डॉ. पूनम माटिया के संयोजन-संचालन में 27 अगस्त को अखिल भारतीय ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी ‘ज़ूम’ के माध्यम से आयोजित हुई| लगभग दो घंटे काव्यरस की मधुरिम वृष्टि में भीगते-आनंदित होते रहे कविगण एवं काव्य-रसिक सहृदय श्रोता| अंतस् के संरक्षक श्री नरेश माटिया एवं प्रेरणा संस्था के संस्थापक श्री ज्ञान वर्मा की गरिमामयी उपस्थिति रही|

सरदार गुरुचरण सिंह ‘अज़ीज़’ (नूरपुर, बिजनोर) की अध्यक्षता में मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि का दायित्व निभाया क्रमश: डॉ दमयंती शर्मा ‘दीपा'(मुम्बई) और डॉ दिनेश कुमार शर्मा (अलीगढ़) ने| ज्ञात हो कि डॉ.दमयंती अंतस् की आजीवन सदस्या हैं तथा डॉ दिनेश अलीगढ़, उत्तर प्रदेश से संस्था के प्रभारी|

हो सुशोभित भाल पर मुक्ता मणि-सी / रजत-रज निज को करूँ, चन्दन करूँ / माँ शारदे तुझको नमन, वंदन करूँ..
वाणी-वंदना मधुर स्वर में प्रस्तुत की श्रीमती रश्मि कुलश्रेष्ठ (कानपुर) ने तथा अन्य सहभागी कवि-कवयित्रीवृंद में अपनी शानदार काव्य-प्रस्तुति दी गुलाबी नगरी जयपुर से डॉ एस एन शर्मा ‘रसराज’, श्री आनंद पांडे ‘उल्लासि’ तथा दिल्ली(एन सी आर) से श्रीमती अंशु जैन, डॉ नीलम वर्मा, श्रीमती माधुरी स्वर्णकार, डॉ अंजना सैंगर और श्रीमती सुनीता बंसल ने|
धूल आदर्शों पर पड़ी चुपचाप / भीड़ आखिर में छँट गयी चुपचाप
जाने किस मिट्टी की बनी थी वो / सरनिगूँ ही खड़ी रही चुपचाप
हक़ में उसके न थी कोई भी बात / खिड़कियाँ बंद और सभी चुपचाप
लूटते ही रहे दरिन्दे और / बेज़ुबां लुटती ही रही चुपचाप
….पूनम माटिया
यूँ तो होते हैं बहुत बातें बनाने वाले / कम हैं दुनिया में तअल्लुक निभाने वाले
तुझको इक रोज़ जमाने में मिलेगी शुहरत / नेकियाँ करके समुंदर में बहाने वाले
….गुरुचरण सिंह ‘अज़ीज़’
अब के सावन में रहे, खाली दोनों हाथ / मेरी किस्मत भी बही, इन फ़सलों के साथ


खाली हांडी देखकर, हृदय रहा है सूख / नून तेल की छौंक से, मिटती माँ की भूख
….दमयंती शर्मा ‘दीपा’
कम अज़ कम “अंजना” इतनी तो मैं पहचान रखती हूँ / सजा कर के हथेली पर मैं अपनी जान रखती हूँ
मैं औरत हूँ मेरे तन पर भी खामोशी का ज़ेवर है / मैं अपने दिल में लेकिन इक बड़ा तूफान रखती हूँ
…. अंजना सिंह सेंगर
सुनकर ये खबर मुँह में निवाले नहीं गये / सैलाब आँसुओं के सम्भाले नहीं गये
इंसानियत के नाम पे धब्बा हैं ये मगर / ये बदनुमा-से दाग निकाले नहीं गये


अंतस् के इस मंच पर छाया है आनंद / कविगण चेतन-भाव से सूना रहे हैं छंद
…..रश्मि कुलश्रेष्ठ
बड़ी मस्त बंसी बजाए कन्हैया / रसीले सुरों से रिझाए कन्हैया
अदाओं से ऐसे वो करता है बस में / मुसलसल है दिल को छकाए कन्हैया
….नीलम वर्मा
वर्तमान जैसे-तैसे कटता सभी का किंतु, व्यापक ‘रसराज’ की कहानी होनी चाहिए।
मरकर एक रोज़ जाना सबको पड़ेगा किंतु, मरने के बाद भी निशानी होनी चाहिए।।


तू मुझे जान ले, मैं तुझे जान लूँ / है बड़ा ही सरल प्रीत का व्याकरण/तू मेरी मान ले, मैं तेरी मान लूँ
….एस.एन.शर्मा ‘रसराज’
जवाब उनसे सवालों का जब दिया न गया / हमीं ने बात बदल दी जो कुछ कहा न गया
….माधुरी स्वर्णकार
नारी-विषयक कविता
‘तुझ में क्या नहीं है?’- झांसी वाली लक्ष्मीबाई है तुझमें / वीर माता जीजाबाई है तुझमें
विश्व की अपार कल्पना-नवदुर्गा समाहित है तुझमें /अब तो हवाई जहाज उड़ाने की क्षमता है तुझमें
….दिनेश कुमार शर्मा
सुलझा ले तू जुल्फें कि अब तो चलना होगा, सुबह से हो गई शाम अब तो ढलना होगा
यहाँ हम भी मुसाफ़िर और तुम भी मुसाफ़िर / कर लें दुआ-सलाम न जाने कब मिलना होगा
….आनंद पांडे ‘उल्लासि’
श्री कृष्ण की जीवन-यात्रा पर आधारित कविता का पाठ किया सुनीता बंसल ने तथा अंशु जैन, संस्था की वरिष्ठ उपाध्यक्षा ने अपनी रचना ‘अंतत: मैं चुप हो गयी’ पढ़ी तथा सभी को विधिवत धन्यवाद ज्ञापित किया|

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]