मेरा हरसिंगार मेरा श्रृंगार
ना जाने मेरे हृदय में क्या होता है, मैं खिंची चली जाती हूँ,जहाँ भी मेरे प्रिय फुल हरसिंगार की खुशबू आती है। एक अजीब सी आत्मिक शांति और सुखद एहसास होता है। नारंगी डंटल और श्वेत पँखुड़ी आँखों में ठंडक प्रदान करती है।
अभी पिछले वर्ष शारदीय नवरात्रि की बात है। अष्टमी थी क्योंकि इस फूल से मेरा क्या लगाव झुकाव और खिंचाव है यह तो गिरधर ही जाने, तो इस पुष्प के वृक्ष का मेरे घर में होना स्वाभाविक है। मैं नवरात्रि में इसके फूलों का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। फूल तकरीबन नाम मात्र के लिए आए थे और मेरी अभिलाषा थी की माँ भगवती को आज यानी अष्टमी के दिन सिर्फ हरसिंगार के फूल ही अर्पित करूँ लेकिन मेरे पारिजात के वृक्ष पर इतने पुष्प नहीं आ पाए थे। मैं बुझे मन से माँ को चूड़ी सिंदूर चढ़ा रही थी, तभी मेरे दरवाजे को किसी ने खटखटाया मैंने देखा एक वृद्ध आदिवासी महिला एक झोला लिए खड़ी थी और कही बेटा तुम आज यह रख लो, यह मेरे घर की ही है। हमने पूछा क्या है मासी। उसने कहा खुद ही देखो। मैं झोला देख मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। झोले में हरसिंगार के सुंदर से फूल हँस कर मुझे निहार रहे थे। उस समय मेरे हृदय में जो भाव उत्पन्न हुए उसे लिखने में मेरी लेखनी सक्षम नहीं। कुछ ऐसा हुआ जो कल्पना से परे था।
यह मेरे गिरधर की तरफ से इस मीरा को भेंट थी या माँ भगवती का आशीर्वाद।जो भी था भाव विभोर करने वाला रोमांच से भरा कभी ना विस्मृत करने वाला सुखद क्षण जो मेरे मानस पटेल पर हमेशा के लिए अंकित हो गये।
वाकई कुछ रिश्ता है मेरा हरसिंगार से, शिवली से, पारिजात से, शेफाली से।
— सविता सिंह मीरा