यादें
मेरे अंदर एक ज़माना है।
यादें है न उनका पैमाना है।
सोचो जो कह देना बेफिक्र,
तुम्हारा इस शहर में आना है।
छत पर थी बहुत ज़िम्मेदारी,
दिवारों का भी संग ठिकाना है।
पूछोगे भेद खुल जाएंगे बहुत,
खामोशी से भी क्या बचाना है।
आओ अब अतीत को खंगाले,
बहुत से लम्हों को दिखाना है।
शब्दों से रिश्ते की गहराई समझो,
तुम से शुरू तुम पे खत्म फसाना है।
— कामनी गुप्ता