मुक्तक/दोहा

रूबाई

उसे दुनियां वालों से क्या वास्ता,
जो भूखों का आसरा देखता है।
जिसे देखने की है ख्वाहिश वो क्यों,
तेरी आंख का देखना देखता है।
अचानक पड़ी जो नज़र तो वो बोले,
अरे मेरी सूरत में क्या देखता है।
कहा मैंने देखा जो कहना है मुश्किल,
नहीं झूठ बिल्कुल खुदा देखता है।
वो नाकाब हैं इब्तिदा से ही बालम,
जो भूखों की इंतेहा देखता है।

— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409