गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरी ये ज़िन्दगी उसी की है
मुझमें खुशबू रमी उसी की है

रूह को तिशनगी उसी की है
दिल को चाहत लगी उसी की है

उसकी चाहत की चाँदनी देखो,
हर तरफ़ रौशनी उसी की है

दर्द ग़म भूल के हँस लेते हैं,
मुझमें जो ताजगी उसी की है

ग़म के दरिया में डूबने न दिया,
रब है जादूगरी उसी की है

बेबसी बेकसी ने जब मारा ,
राहते आख़री उसी की हैं

दिल्लगी बेदिली तमाशाई,
नज़र-नज़र नमी उसी की है

इश्क परवरदिग़ार से है “मृदुल”,
मौसिकी आशकी उसी से है

— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016