ग़ज़ल
मेरी ये ज़िन्दगी उसी की है
मुझमें खुशबू रमी उसी की है
रूह को तिशनगी उसी की है
दिल को चाहत लगी उसी की है
उसकी चाहत की चाँदनी देखो,
हर तरफ़ रौशनी उसी की है
दर्द ग़म भूल के हँस लेते हैं,
मुझमें जो ताजगी उसी की है
ग़म के दरिया में डूबने न दिया,
रब है जादूगरी उसी की है
बेबसी बेकसी ने जब मारा ,
राहते आख़री उसी की हैं
दिल्लगी बेदिली तमाशाई,
नज़र-नज़र नमी उसी की है
इश्क परवरदिग़ार से है “मृदुल”,
मौसिकी आशकी उसी से है
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”