गीतिका/ग़ज़ल

रास्ता कोई न था

प्यार बस तुमको किया तुमसा दिखा कोई न था |
अक्स दिल में दिल तेरा बाकी मेरा कोई न था |

आदमी में आदमीयत का हुनर दिखता था जब,
जिंदगी आसान थी शिकवा गिला कोई न था |

बात दिल की हम कभी पहुँचा न पाए उस तलक,
अश्क़ आँखों से बहाता दूसरा कोई न था |

बस मिली रुसवाइयों की तंग गलियां प्यार में
हमसफर हमराज हमदम बागबाँ कोई न था |

स्याह रातों ने डराया जब ‘मृदुल’ दिल को मेरे
मुझ में तुम थे तुझ में हम तुमसा यहां कोई न था |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

गिरह
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चाहते हसरत समेटे आ गए उसे मोड़ पर |
मंजिलें थी सामने पर रास्ता कोई न था |

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016

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