भाषा-साहित्य

हिंदी भाषा जूझती रहेगी या स्वर्णिम दौर लौटेगा ?

हिंदी दिवस मनाना बुरी बात नही है पर दिखावा प्रचार प्रसार हेतु हिंदी पखवाड़ा ,हिंदी सप्ताह या एक दिन के लिए हिंदी दिवस मनाना हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।पहले अंगेजो के गुलाम थे अब अंग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं अंगेजी भाषा ने भारत मे पैर जमा लिए है।स्कूलों में अंग्रेजी का माध्यम ज्यादा नहीं होता था, आज उनकी मांग बढ़ने के कारण देश के बड़े-बड़े स्कूलों में  हिन्दी  पिछड़ रहा हैं। इतना कि उन्हें ठीक से हिन्दी लिखना और बोलना भी नहीं आती है। भार‍त में रहकर हिन्दी को महत्व न देना भी हमारी बहुत बड़ी भूल है। अंग्रेजी बाजार के चलते दुनियाभर में हिंदी जानने और बोलने वाले को अनपढ़ या एक गंवार के रूप में देखा जा रहा है।स्वतंत्रता पूर्व शताब्दियों तक हिंदी भाषा के लिए कोई संघर्ष नही था पर उदासीन मानसिकता,राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव तथा अंगेजी द्वारा हिंदी का विरोध के कारण ये  लगातार दम तोड़ती नजर आई।कुछ हिंदीतर नेताओ के विरोध तथा हिंदी भाषी नेताओ के इच्छाशक्ति के अभाव के कारण हिंदी राष्ट्रभाषा नही बन पाया।स्वतंत्रता के बाद14सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाया। राष्टभाषा प्रचार समिति ने 1953 में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी को प्रसारित करने के लिए 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का निर्णय लिया तब से ‘हिन्दी दिवस’ के रूप में मनाया जाता हैं।

राजभाषा का पद पाने के लिए कडा संघर्ष किया,और राष्ट्रभाषा हेतु आंदोलन के साथ संघर्ष करते-करते वह आगे बढ़ रही है।स्वतंत्र राष्ट्र की राष्ट्रभाषा को ही राजभाषा का गौरव प्राप्त होता हैं वही राष्ट्र अपनी बहुमुखी प्रगति कर सकता है पर स्वतंत्रता के बाद केवल राजभाषा के रुप में स्थान मिला  उसे भी देश के प्रशासन ने उसे उपेक्षित ही रखा। राजभाषा का सामान्य और सरल अर्थ प्रशासनिक कार्यों में राजभाषा का प्रयोग किया जाना  पर दुर्भाग्यवश इस संदर्भ में प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता सामने आती है। व्यवहारिक रुप में आज भी राजभाषा का स्थान अंग्रेजी के कब्जे में है,हिंदी तो नाममात्र के लिए राजभाषा कही जाती है।आज आजादी के 77 साल बाद भी उसकी योग्यता में इतने प्रश्न निर्माण किए गए हैं कि यह विषय सुलझने की बजाए और अधिक उलझता ही गया है। जब-जब राजभाषा हिंदी को उसके मौलिक अधिकार प्रदान करने हेतू कोई आंदोलन चलाया गया,तो चंद राजनीतिक ने विशेषकर कई गैर हिंदीभाषी तथा कुछ हिंदी भाषी नेताओ ने अधिकार छिनने का प्रयास किया गया।राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव यह सबसे बड़ी चुनौती है।

नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फॉर्मूले को जिस तरह बनाया गया है और जिस तरह से तीन में से दो भारतीय भाषा रखने की बात की गई है, उससे हिंदी का दायरा और बढ़ेगा। अब तक गैर हिंदी भाषी राज्य सिर्फ अपने प्रदेश की भाषा और अंग्रेजी का प्रयोग करते थे। हालांकि, अब तीसरी भाषा के होने की अनिवार्यता से हिंदी को ज्यादा जगह मिल सकती है।डिजिटल हिंदी आज के दौर में किसी भी चीज को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल टूल्स काफी मददगार होते हैं। इसलिए वर्तमान सरकार के कार्यकाल में राजभाषा विभाग द्वारा सी डैक के सहयोग से तैयार किये गये लर्निंग इंडियन लैंग्‍वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) मोबाइल ऐप भी बनाया गया है। इस ऐप पर लोग आसान तरीके से हिंदी भाषा को समझ और सीख सकते हैं। इसके अलावा भी सरकार कई अन्य डिजिटल तरीकों को भी प्रोमोट कर रही है।देशभर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने का मकसद रखते हुए केंद्र सरकार ने अपने सभी विभागों को भी हिंदी का प्रयोग करने की सलाह दी है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने कहा कि नई सरकार सभी विभागों एवं सार्वजनिक जीवन में हिंदी मे कामकाज को बढ़ावा देगी।केंद्र की सरकार ने हिंदी के विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए विभिन्न प्रोफेशनल कोर्सेज को भी हिंदी भाषा में ही पढ़ाने पर जोर दे रही है। सरकार द्वारा मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी अब हिंदी भाषा में करवाई जा रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश के सभी 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में हिंदी भाषा में पढ़ाई की शुरुआत की गई है। इसके अलावा सरकार हिंदी दिवस के मौके पर विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों को भी आयोजित करवाती है।हिंदी अपने आप में एक विशाल जन समूह द्वारा बोली जाने वाली भाषा तो है ही। सिर्फ भारत नहीं, बल्कि फिजी, मॉरीशस समेत कई अन्य देशों में प्रमुखता से बोली जाती है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा न मानने की बात हजम नहीं होती। इस लिए वर्तमान सरकार ने हिंदी भाषा को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए सरकार वर्तमान प्रधानमंत्री स्वयं भी यूएन समेत विभिन्न वैश्विक मंचों पर हिंदी भाषा में ही बात करते दिखाई देते हैं।इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल ने हिंदी भाषा के भविष्य के संबंध में भी नई राहें दिखाई है। गूगल के अनुसार भारत में अंग्रेजी भाषा में जहाँ विषयवस्तु निर्माण की रफ्तार 19 फीसदी है तो हिंदी के लिए ये आंकड़ा 94 फीसदी है। इसलिए हिंदी को नई सूचना प्रौद्योगिकी की जरूरतों के मुताबिक ढाला जाए तो ये इस भाषा के विकास में बेहद उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

देश के  समृद्धि, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, व्यवहारिक अर्थात देश की बहुमुखी प्रगति के लिए जनभाषा का प्रयोग होना जरुरी है।हिंदी अपने उपयोगितावादी पहलुओं से परे साहित्यिक, कविता, रंगमंच और कलात्मक अभिव्यक्ति के अन्य रूपों सहित रचनात्मक प्रयासों के लिए एक मंच प्रदान करती है, विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमि वाले लोगों के  बीच संचार का एक सामान्य साधन है।जिससे व्यक्तियों को विचारों, भावनाओं और को व्यक्त करने की अनुमति मिलती है।हम हिंदी को बिना शर्म गर्व से  बोले शासन को प्रचार प्रसार की आवश्यकता  न पड़े हर दिन हिंदी दिवस हो तभी  हिंदी के साथ न्याय होगा।

—  त्रिभुवन लाल साहू

त्रिभुवन लाल साहू

बोड़सरा,जाँजगिर ,छत्तीसगढ़ सेवा:जूनियर इंजीनयर,,स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड,,भिलाई,,छत्तीसगढ़