लघुकथा

हिन्दी, हमारा अभिमान

“प्रिया, मैं शाम को देर से आऊंगा।”

” हम सब मित्र आज फ्रेंडशिप डे मना रहे हैं।”

” मैं भी आ जाती हूं ना आपके साथ।”

” मेरा मजाक उडवाना है जो तुम्हे साथ ले जाऊं।” 

” अंग्रेज़ी तो आती नहीं। हिन्दी संभाषण नहीं चलेगा वहां। हाय क्लास पार्टी होगी। तुम तो ठहरी… जाने दो।”

“माॅम, आज स्कूल में मिटींग है। पापा आ जायेंगे। आप न ही आओ तो ठीक रहेगा।”

बिटिया कहकर चली गयी। प्रिया की आंखों से अनायास आंसू टपकने लगे।

क्यों हम हमारी मातृभाषा को दीन-हीन समझते हैं?

निज भाषा का गर्व, अभिमान  होना ही चाहिए।

ठान लिया उसने, कौशल, ज्ञान से हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना होगा। आज से ही श्रीगणेश करूंगी।

सीमा, रजनी, माला, सुष्मिता, मोहिनी सब सखियों ने मिलकर संकल्पना को साकार करने का बीडा उठाया।

हिन्दी भाषा के उच्च कोटि के साहित्यिक सुसंवाद, लयबध्द अलंकारों से सुशोभित कविता, शिक्षाप्रद कहानियां, ज्ञानवर्धक रचनाओं का संकलन किया गया।

ताल बद्ध, गेय, सुरीला, मनभावन सृजन धीरे-धीरे सबको भाने लगा।

खेलते -खेलते, बच्चों के साथ बच्चें बनकर हिन्दी का गुणगान होने लगा। प्रयास सफल होते देख हौसला बढने लगा।

आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष में आयोजित कवि सम्मेलन में हिन्दी के महान हस्ताक्षर,

महामहिमों की रचनायें सुनने खचाखच भरे प्रशाला के प्रांगण को देख पुलकित हो प्रिया का मन मयूर झूम रहा है। 

“हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमारा अभिमान है, हमारी पहचान है..”

तालियों की गड़गड़हट.से

 मातृभाषा हिन्दी का गौरव गान  हो रहा था और हिन्दी प्रेमियों का मन भावविभोर, तृप्त हो रहा था।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८