कविता

अनमोल मोती

स्वेद परिश्रमी का गौरव गान,

अन्नदाता किसान का सम्मान,

हीरे जवाहरात बेशकीमती,

बूंद बूंद झरते अनमोल मोती।।

माटी में पसीने की बूंदे झरती,

दानों से भरी फसल लहलहाती,

हलधर की आंखों में आंसू आते,

आंसू स्वेद संग श्रम गाथा रचते।।

पसीना पोंछते खाना बनाती माता,

लाडलों को खिला, निहाल माता,

अंश की तृप्ति से तृप्त हो जाती,

खारा पसीना आंचल भीगा जाता।।

पसीना नेह हैं जीवन कर्मठता का,

पसीना सम्मान हैं श्रम शक्ति का,

पसीना पावन बूंदे, महती गहना,

झरते जहां, आलोक सफलता का।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

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