हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – साँची कहूँ तो

साँची कहूँ तो यह बात एकदम सच है कि सच को सच -सच कहने का साहस सब में सहज नहीं तो दुर्लभ अवश्य है। इतना ही नहीं सच को सुन पाने का साहस भी सर्वथा दुर्लभ ही है। विचारणीय यह है कि इस ‘सच’ में ऐसा कौन -सा सच अंतर्निहित है,कि यह सहज ही किसी को सह्य नहीं है। सच कहने और सुनने से हर व्यक्ति बचता है। जबकि सारे संसार का एकमात्र सच यही है कि संसार की सभी जड़-चेतन वस्तुओं,मनुष्यों,जीव -जंतुओं,वनस्पतियों आदि का एकमात्र आधार सच ही है। सच के बिना किसी का कोई अस्तित्व नहीं है। उसका महत्व नहीं है। फिर भी उससे दूरी और पलायन का क्या कारण है ?

सच की सच्चाई की तह में जाने के लिए मानव देह को ही उदाहरण स्वरूप ले लिया जाय,तो बात की सच्चाई पता लगाने में कुछ सीमा तक पहुँचा जा सकता है। प्रत्येक मानव के त्वचावरण के नीचे क्या और कैसा है, इसे आज विज्ञान ने बख़ूबी दिखला बता दिया है। यदि वह सब सच्चाई विज्ञान न बताता तो अंदर के अंगों की स्थिति,रचना, कार्य, क्रिया प्रणाली, रंग-रूप, वास्तविकता कोई भी नहीं जान पाता। त्वचा के खोल के झूठ ने सारी सचाइयों को आवृत कर लिया है। इसलिए हमें अपने सिर,मस्तक, आँख,भौं,नासिका,मुँह,गाल,चिबुक,जीभ, दाँत आदि तथा हाथ पैर उदर,वक्ष और उनके उपांग आदि ही दिखाई पड़ते हैं। यह भी एक सच्चाई है। किंतु इससे भीतर की सच्चाई जानने और देखने की क्षमता भला किस में है !जब इन सबके ऊपर भी पेंट, शर्ट,कुर्ता, धोती,जूता,मोजा,टाई,साड़ी, ब्लाउज आदि चढ़ा लिए जाते हैं तो ऊपर बताई गई सचाइयां भी दब-ढँक जाती हैं। बस एक झूठ का बदला हुआ आवरण ही दिखाई दे पाता है, जिसे हम सभी सहज रूप में स्वीकार करते हैं।

उक्त विवेचन से यह स्प्ष्ट होता है कि झूठ ही सर्व सुलभ है। सहज स्वीकार्य है। सहज दृष्ट भी है। झूठ को देखने में हमें कहीं कोई आपत्ति नहीं है। यदि आपत्ति और कष्ट की बात है तो सच के लिए है। यही कारण है कि झूठ पानी पर कागज की नाव की तरह उतराता है। सतराता है। बहता है। किलोल करता है। सबको दिखता है। सबको भाता है। मन की कलिका को खिलाता है। बगिया को महकाता है। पर सच में वह बात कहाँ, जो झूठ में है! श्रम से स्वेद बहता है,पर मजे की बात तो लूट में है। मेल -जोल, प्रेम, शांति,सौहार्द्र पड़े हैं एक कोने में ; परंतु दुनिया जो पसंद करती है वह रौनक लड़ाई-झगड़े,दंगा- फ़साद या फूट में है। यही सब तो टीवी,अखबार और सोशल मीडिया की शोभा है।

जो नहीं होना चाहिए, वही झूठ है। जो होना चाहिए, वही सच है। सच मंदिर में फूल, फल, माला, सुगंध, धूप,तिलक,भोग से पूजा जा सकता है। उसके बाद उसमें ताला जड़ जाता है और सच नारी की अस्मत और अस्मिता के रूप में दिन दहाड़े लुट जाता है। मंदिर का पूजक पुरुष ही वह लुटेरा है,जो सत्य की पूजा तो कर सकता है,किन्तु जीवन में सत्य को जी नहीं सकता। देख नहीं सकता। झूठ के काले चोगों के नीचे अदालतों में सच तड़पता रहता है। और जब न्याय की देवी अपनी आँखें खोलती है,तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। न झूठ रूपी अपराधी रहता है, और न सुबूत ही साबुत बचते हैं। एक जीवित सच की हत्या हो जाती है। सामान्यतः कोई दोषी अपना दोष सहज स्वीकार नहीं करता,यदि कर भी लेता है, तो इसे भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। और वादी को न्याय मिलने में दशाब्दियाँ लग जाती हैं। सच के यथार्थ का एक रूप यह भी है।

अपनी प्राथमिक अवस्था में सच अत्यंत कठोर है,कुरूप है और असहज है। दूसरी ओर झूठ आदि से अंत तक कोमल, सुंदर और सहज सुलभ है। सत्य का आनन्द सब नहीं जानते। जो जानता है,वह पाता है। सच, सच है। एक रूप है। जबकि झूठ बहुरूपिया है। ठगिया है। सच कठोर जमीन का यात्री है,तो झूठ हवाई यात्रा से कम कदम नहीं बढ़ता। अब भला मैं क्यों बताऊँ कि आपको किसे अपनाना है। झूठ की माला से नथुनों को महकाना है अथवा गाना सच का तराना है! झूठ के बिना काम नहीं चलता, यह एक मन मोहक बहाना है। झूठ के बिना भी सबको मिलता ठिकाना है।

— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040

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