गीतिका
एक विधा के नाम अनेक।
लोग काटते अपने केक।।
वही गीतिका सजल विधा,
ऊँचा करते नाम अनेक।
कोई हिंदी ग़ज़ल पुकारे,
टर्राते सरवर ज्यों भेक।
विविध गीतिका के पर्याय,
किंचित अंतर का अविवेक।
अलग शैलियाँ भाषा भाव,
थोड़ी भिन्न बनी है टेक।
कॉमा हटा संलग्न विराम,
सजल नाम ही मानें एक।
‘शुभम्’ लिखें अपना इतिहास,
उचित नहीं इतना अतिरेक।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’