कविता

डूबो कुछ गुहर के लिए

कुछ अपने में डूबो
कुछ दुनिया में
उचटे हुए खोए-खोए मत रहो
नहीं तो खो जाओगे एक रोज़
और खो दोगे वे अमूल्य गुहर
जो तुम्हें
कुछ अपने अंदर मिलेंगे
और कुछ दुनिया में डूबकर!

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137

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