गीत/नवगीत

तेरे नाम के मद में

तेरे नाम के मद में राधे, मैं तो डूबा जाऊँ
सुबह-शाम-दिन-रात मैं,राधे-राधे-राधे गाऊँ।

चखकर तेरे नाम की मदिरा, दुनिया भूल गया हूँ
ना जाने तू घर बैठे ही, जमुना कूल गया हूँ
कालिंदी के जल में हरदम, तेरे दर्शन पाऊँ
तेरे नाम के मद में राधे, मैं तो डूबा जाऊँ।1।

इतनी महँगी मधु ना राधे, जग में कहीं मिलेगी
भक्ति की ऐसी मधुशाला, अब ना कभी खुलेगी
जहाँ पिलाती हो ब्रजरानी, मैं तो पीता जाऊँ
तेरे नाम के मद में राधे, मैं तो डूबा जाऊँ।2।

अपने चरणों के प्याले में, मुझको सदा बसाना
जब काह्ना से मिलने जाओ, साथ मुझे ले जाना
बनकर तेरे पाँव का घुंघरू, अपने पर इतराऊँ
तेरे नाम के मद में राधे, मैं तो डूबा जाऊँ। 3।

तू भी पी ले राधे रस को, जीवन खिल जायेगा
अगर गया तू चूक जो पगले, हरदम पछताएगा
मिट जाएँगे रोग सभी , मैं आज तुझे समझाऊँ
तेरे नाम के मद में राधे, मैं तो डूबा जाऊँ।4।

— शरद सुनेरी