फिर लिखूंगा
फिर लिखूंगा!कहां से लाऊं?वो वक्त जबअलंकारों का आयोजन होता थामन और बुद्धि के बीच!अब तोकंपनी ने मेरा वक़्त खरीद रखा हैसुबह दस से रात दस तकमेरी कंपनी की मशीनों (आदमी )को नहीं पता मेरे अंदर कौन व्यक्ति मर रहा है तेज ज्वर सेपहरा रहता है कैमरों कासिर के उपरहाँ!एक कंप्यूटर है जो मेरी हाजिरी लेता हैलेकिन कभी मेरा हाथ पकड़ कर हाल नहीं पूछता!देख रहा हूं खुद को मरते पेट के लिए और औरों कोभी बिकते पेट के लिए आधा जीवन बेच करसुकून और घर का मकसद रहता है !जो इसदुनिया मेंपैसे पूजने वाले होने नहीं देतेकभी कोई जीवित मिला तोएक और कविता लिखूंगा!प्रवीण माटी