कविता

कविता -सुख भरी सांसें

व्यस्त भरी जिंदगी में सुख भरी सांसे कम है
भाग रहा इंसान धन , दौलत के पीछे है
शांति कहां उसकी जिंदगी में दर बदर घूम रहा है
इच्छाएं बढ़ती जा रही उसको पूरा करने में लगा है

किसको क्या पता उसकी कितनी सांसे है
प्रभु देता जीवन सांस भी गिनकर देता है
जग में आकर यहां की रौनक में खो गया है
जीवन की आपाधापी में प्रभु का नाम भूल गया है

मानव जीवन मिला किसी की मदद करते है
कौन जाने कब हम अपनों से बिछड़ जाते है
क्यों भाग रहा इंसान माया तो आनी जानी है
इस जीवन में सुख भरी सांसे ही गिनती की है.[….]

— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश