गाँधी जी क्या चाहते थे?
गाँधी जी क्या यह चाहते थे?
भारत को स्वतंत्र करा कर
हिन्दू मुस्लिम भेद बनाकर
एक दूसरे का जीवन लें
अपनी धरती माँ को बांटें
या निर्बल आशय जनों का
यौवन लूटें ,बच्चे काटें
कितने दुःख की बात यही है
मानव ने मानव का केवल
इसीलिए था जीवन लूटा
मंदिर मस्जिद घर ईश्वर के
किया था इन में भेद अनूठा
ये पदलोलुप भँवरे काळा
जनता के बनते रखवाले
उन्हों ने ही सारे भारत का
ऐसा सूंदर नाश किया है
जो अबतक भी संभल न पाया
गाँधी के स्वराज्य का देखो
क्या गाँधी जी यह कहते थे
हर भाषा इक प्रान्त बना दो
हिन्दू- सिख- ईसाई सारे
भारत के टुकड़े करवा दो
गलत बात मनवाने हेतु
असहयोग आंदोलन कर दो
इतने पर भी सफल ना हो तो
मरण व्रत का ढोंग ही कर लो
छात्रों को ऐसा सिखलाओ
रेल बसें सरकारी वास्तु
सभी को मिलकर आग लगाओ
क्रोध की आग में ऐसे भड़को
हानि अपनी आप ही करलो
इसीलिए सब जेल में जाओ
क्योंकि कल को वोट मांगते
जेल काटी प्रसंग उठाओ
या जनता को लोभ लाभ दे
जनता पर अधिकार जमाओ
निर्धन का फिर शोषण करके
महलों की शोभा बन जाओ
सोचके मन को दुःख होता है
देश का कितना किया सफाया
गाँधी के स्वराज्य का देखो
कितना अच्छा व्यंग्य बनाया
गाँधी जी तो यह चाहते थे
भारत इक संपन्न देश हो
सोने की चिडया हो जाये
छोटे-बड़े सभी एक हों
इसको उन्नत देश बनायें
अन्य देश इसको ना लूटें
हम में इतना बल हो जाये
सच्चे इतने बब्बन भारती
सच्चाई पर जान लुटाएं
और अहिंसा को अपना कर
सारे ही निर्भय हो जाएँ
सुशिक्षित हों सभी भारती
bure-भले को सभी जान लें
इतनी सच्चाई हो मन में
अपनी गलती खुद ही मान लें
छात्र सभी हों आज्ञाकारी
गुरु शिष्य को सुशिक्षा दें
पास पड़ोस में रहने वालों
की पीड़ा को पूर्णता हर लें
युवा देश के अभी समय है
गाँधी के सपनों का भारत
अब भी तुमको यह कहता है
जागो मिलकर मुझे सम्भालो
आजादी का अर्थ जानकर
इसका बीड़ा तुम्ही उठा लो
— डॉ. केवल कृष्ण पाठक