नत मस्तक
रमाकान्त एक रिटायर्ड प्रो.थे । उनकी शुरू से आदत थी कि सुबह वह टहल कर आते और हरिया की दुकान पर चाय पीते थे । चाय पीने मे इधर उधर की बहुत बातें होती थी । रमा कान्त देखते थे कि रोज एक लड़का उस समय अखबार लेकर बहुत ध्यान मग्न होकर उसमें कुछ ढूंढता रहता है। एक सुबह वह वहाँ पर नहीं था । रमाकान्त ने हरिया से पूछा कि वह बच्चा आज कहां गया और वह तुम्हारा कौन है। हरिया ने कहा साहब यह मेरे छोटे भाई का बेटा है। इसकी मां बचपन में ही गुजर गयी थी । भाई ने दूसरी शादी करली । सौतेली मां परेशान करती थी मेरे पास बस एक बिटिया है। मेरी पत्नी बोली सुनो सोनू को हम बुला लेते हैं मेरे को बेटा और मेरी बेटी को भाई मिल जायेगा । शुरू से हमारे साथ रहता है । पढ़ने में बहुत होशियार है। सुबह अखबार बांटता है फिर मेरे पास आकर मेरी दुकान लगवाता है और कुछ देर अखबार को पढ़ता है शायद कुछ और काम मिल जाये फिर कालिज चला जाता है। शाम को इसने कोई कम्प्यूटर कोर्स किया था उसके बाद वही कुछ काम करता है। रात दिन बस बहन की शादी की चिन्ता करता है। मै समझाता हूँ बेटा अभी तो मै हूँ तेरी बड़ी मां है फिर भी कहता है बाबूजी अब ग्रेजुएशन पूरा हो जायेगा मै अपने परिवार को सब सुख देना चाहता हूँ । आज शायद उसका कोई इन्टरव्यू है। दूसरे दिन जब सुबह रमाकान्त जी दुकान पर चाय पीने पहुँचे। सोनू तुरन्त उनके पैर छूने झुका उन्होंने उससे कहा कल तुम अपने इन्टरव्यू में सफल हो गये । सोनू वोला जी अभी टेम्प्रेरी कम्प्यूटर डिपार्टमेंट में रखा है। रमाकान्त जी ने कहा कुछ दिन बाद सब सही हो जायेगा । किसी को यह नहीं पता था कि उस कम्पनी का हैड रमाकान्त जी का बेटा है। हरिया और सोनू को जब पता लगा दोनों रमाकान्त जी के चरणों में नत मस्तक हो गये ।
— डा. मधु आंधीवाल