मिट्टी की खुशबू
ऊंची-ऊंची इमारतें खूबसूरत बालकनी एवं उच्च मध्यम वर्गीय परिवारों का रहन-सहन सब कुछ कल्पना जी को सपना सा प्रतीत हो रहा था ।
बेटा और बहू दोनों ऑफिस चले जाते थे, कामवाली को खास हिदायत देकर कि, माँ को कोई कष्ट नहीं हो । फिर भी वह एक सप्ताह होते-होते ऊब गईं ।
नन्हीं सुरभि भी प्ले स्कूल से आकर उनके साथ बालकनी में बैठ कर कृत्रिम मिट्टी ( क्ले गम ) से तरह-तरह के पशु-पक्षी बनाती । उसे खुश करने के लिए कल्पना जी कह तो देती-
“वाह मेरी नन्हीं कितना खूबसूरत चूहा बनाई है,साथ में बिल्ली भी है ।”
दो से तीन दिन में ही दादी-पोती एक ही तरह के खेलों से ऊब गई ।
सोचा चलो आज इसे मिट्टी की खुशबू से परिचय करवाती हूँ ।
पोती का हाथ पकड़ वह लिफ्ट से नीचे उतर आईं पार्क में बच्चे खेल रहे थे।
पहली बार नन्हीं अपनी दादी के साथ नीचे आई थी। अक्सर आया उसे बेडरूम में ही खिलौनों से खेलने की हिदायत देती थी ।
कल्पना जी पोती को घरौंदे कैसे बनाती थीं बताने लगी ।
दादी-पोती दोनों कब बच्ची बन गई पता ही नहीं चला ।
लौटते समय नन्हीं कहने लगी-
“थैंक्यू दादी; अब मुझे खिलौने नहीं प्लांट चाहिए। मैं पापा से बोल कर मंगवाऊंगी ।”
— आरती रॉय