कविता

संस्कार का बीजारोपण

संस्कार का बीजारोपण, सीख सिखाना इस का कारण।
मां के पेट में शिशु सब सुनता, संस्कार को मन में बुनता।
जैसी सोच कुटुंब की होती, संस्कार है वैसा ही बोती।
बच्चे आचरण बड़ों का देखे, वैसे ही बनते उस के लेखे।
चक्रव्यूह का ताना, बाना, अभिमन्यु ने मां पेट में जाना।
मां बाप जैसा चलन चलते, बच्चे भी वैसा ही पग भरते।
बच्चे होते घर से संस्कारी, जैसे होते मां बाप आज्ञाकारी।
बड़ो की सवा जैसे हम करते, वैसा आचरण बच्चे उकरते।
गुरु शिष्य की परंपरा ऐसी, संस्कार बीजारोपण है जैसी।
बनते हैं उच्च कुल के‌ वासी, दुनिया बनती उन की दासी।
संस्कार अब जाते सब खोते, आज्ञाकारी बच्चे नहीं होते।
नशे ने है परिवार उजाड़ा, सुसंगती ने है समाज बिगाड़ा।
आ हम संस्कार सिखाएं, भविष्य बच्चों का निर्मल बनाएं।
बच्चे हैं कल के निर्माता, भारत के हैं यह भाग्य विधाता।
आप भी बन जाओ संस्कारी, आगे फिर है बच्चों की बारी।
संस्कार जिस घर नहीं होते, माता पिता जीवन भर रोते।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. [email protected] M.no. 9418063995

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